अपना शेयर बाज़ार क्यों कुलांचे भऱ रहा है? इसलिए क्योंकि बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) जमकर आ रहा है। लेकिन एफपीआई का चरित्र है – गंजेड़ी यार किसके, दम लगाकर खिसके। उन्हें बाज़ार के गिरने का कोई भय भी नहीं क्योंकि वे आज के बेहद संगठित हर्षद मेहता हैं। उनके पास अमेरिका से लेकर यूरोप तक के विकसित देशों के करोड़ों निवेशकों का अकूत धन है। इस धन की बदौलत वे जिस स्टॉक को चाहें, आसमान तक चढ़ा सकते हैं। इसके ऊपर करैला नीम चढ़ा की हालत इसलिए बन गई है क्योकि भारतीय धंधेबाज़ों का बेनामी और कालाधन मॉरीशस व सिंगापुर जैसे देशों में पंजीकृत शेल कंपनियों के जरिए एफपीआई या एफआईआई बनकर हमारी लिस्टेड कंपनियों में आ रहा है। सेबी और सरकारी जांच एजेंसियां न इन्हें पकड़ सकती हैं और न ही पकड़ना चाहती हैं। अडाणी-हिण्डेनबर्ग मामले ने साफ कर दिया है कि देश में अभी कैसा खुला खेल फर्रुखाबादी चल रहा है। एफपीआई को जब तक भारतीय बाज़ार से अच्छा रिटर्न मिल रहा है, तभी तक वे यहां हैं और जैसे ही किसी किस्म की आफत की आहट मिलेगी, वे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएंगे। हालाकि अगले कुछ साल तक तिलिस्म टूटने के आसार नहीं दिखते। अब मंगलवार की दृष्टि…
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