एक समय देश के वित्तीय क्षेत्र में विदेशी फर्मों की भरमार थी। लेकिन अब भारत के बैंकिंग से लेकर म्यूचुअल फंड और बीमा व्यवसाय से वे किनारा कर रही हैं। विदेशी निवेश के नाम पर केवल पोर्टफोलियो निवेशक बचे है जिनके बारे में यही कहना सही होगा कि गंजेड़ी यार किसके, दम लगाकर खिसके। एफपीआई भारतीय शेयर और ऋण बाज़ार में तात्कालिक मुनाफा कमाने आए हैं, उसकी कोई लम्बी प्रतिबद्धता नहीं है। साल भर पहले सिटी ग्रुप अपना रिटेल बिजनेस एक्सिस बैंक को बेचकर निकल गया। इस समय देश में सक्रिय सबसे बड़ा विदेशी बैंक स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक है जिसकी 42 शहरों में कुल 100 शाखाएं हैं। एचएसबीसी बैंक की तो मात्र 26 शाखाएं हैं। बाकी 38 विदेशी बैकों की मौजूदगी बेहद मामूली है। इनकी तुलना में देखें तो अकेले एचडीएफसी बैंक की देश भर में 8000 से ज्यादा शाखाएं हैं। दुनिया के सबसे बड़े बैंक जेपी मॉर्गन चेज़, बैंक ऑफ अमेरिका, मित्सुबिशी यूएफजे और बीएनपी परिबास भारत से विदा हो चुके हैं। म्यूचुअल फंड उद्योग से मॉर्गन स्टैनले और फिडेलिटी भाग चुके हैं, जबकि टेम्प्लेटन की हालत खराब है। बीमा व्यवसाय में नाम-गिरामी विदेशी कंपनियां देशी कंपनियों की जूनियर पार्टनर बन चुकी हैं। विदेशी फर्मों के भागने की खास वजह भारतीय वित्तीय क्षेत्र में छाई भयंकर लूटखसोट है। अब बुधवार की बुद्धि…
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