जी-20 साल 1999 में बना तो था दुनिया में उभर रहे आर्थिक संकटों से निजात पाने के लिए। लेकिन साल 2008 तक विश्व पटल पर उसकी कोई खास अहमियत नहीं थी। मगर, 2008 के विकट वैश्विक वित्तीय संकट के बाद उसकी भूमिका व प्रासंगिकता बढ़ गई। उसके बाद से हर साल हुए इसके शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के राष्ट्र-प्रमुख, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री शिरकत करते रहे। यह मंच जलवायु से लेकर विदेशी ऋण व आपसी तनाव को सुलझाने में सहायक बनता गया। हर साल अध्यक्षता करनेवाला नया देश बिना किसी स्वार्थ के महज मध्यस्थ की भूमिका निभाता रहा। लेकिन पहली बार इस वैश्विक मंच को अध्यक्ष देश के नेता ने अपनी निजी छवि चमकाने और राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए इस्तेमाल कर लिया। वहीं, भारत को इससे सरकार की शान-पट्टी दिखाने के लिए अलावा कुछ नहीं मिला। सोचिए, अमेरिका के राष्ट्रपति को वियतनाम जाकर बाकायदा प्रेस काफ्रेंस करके बताना पड़ा कि उन्हें भारत में क्या-क्या कहना था। कनाडा के प्रधानमंत्री तो इतने दुखी हुए कि भारत के साथ हो रहा व्यापार समझौता ही टाल दिया। अब सोमवार का व्योम…
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