साल 2012 में जनवरी से लेकर मार्च तक भारतीय शेयर बाजार में धनात्मक रहा एफआईआई निवेश अप्रैल में पहली बार ऋणात्मक हो गया है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के ताजा आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में एफआईआई ने बाजार से 1657.19 करोड़ रुपए निकाले हैं, जबकि एफआईआई ने जनवरी में बाजार में शुद्ध रूप से 10,357.50 करोड़ रुपए, फरवरी में 25,212 करोड़ रुपए और मार्च में 8381.30 करोड़ रुपए डाले थे। इसमें प्राइमरी बाजार और ऋण प्रपत्रों का निवेश शामिल नहीं है।
वैसे, पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के आंकड़े स्टॉक एक्सचेंजों से भिन्न होते हैं। जैसे, सेबी के मुताबिक एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) ने अप्रैल महीने में भारतीय शेयर बाजार से 478.50 करोड़ रुपए ही निकाले हैं। लेकिन सेबी के पास आंकड़े हमेशा एक दिन पहले के होते हैं। दूसरे शब्दों में 30 अप्रैल का आंकड़ा दरअसल इसके पिछले कारोबारी दिन 27 अप्रैल का है। अगर हम 30 अप्रैल को एफआईआई द्वारा शेयर बाजार से की गई 479.53 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद को शामिल कर दें तो एफआईआई का शुद्ध निवेश अप्रैल महीने में 1.03 करोड़ रुपए के नगण्य स्तर पर आ जाता है।
लेकिन आंकड़ों से बाहर का माहौल देखें तो विदेशी निवेशकों में एक तरह का डर अब भी छाया हुआ है। खासकर, मॉरीशस में स्थाई ठिकाना न रखनेवाले एफआईआई डरे हुए हैं कि उन पर बजट में घोषित गार (जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल) की गाज गिर सकती है। सरकार अपनी तरफ से सफाई दे चुकी है कि बेवजह किसी विदेशी निवेशक को परेशान नहीं किया जाएगा। इस बाबत अगले हफ्ते सोम-मंगल को बजट के पास होने पर और स्पष्टता आ सकती है।
लेकिन माहौल ऐसा बनाया जा रहा है जैसे एफआईआई भारत से निकलने को बेताब है। यह सच है कि भारत में आर्थिक विकास की दर धीमी पड़ी है। राजकोषीय घाटे के बढ़ने और रुपए के कमजोर होते जाने जैसी चिंताएं बनी हुई हैं। लेकिन बड़ी संस्थाओं के लिए काम करनेवाले एक देशी ब्रोकरेज हाउस का कहना है कि यह सब खाली-पीली का हल्ला है। अहम सवाल यह है कि एफआईआई अगर भारत से निकलेंगे तो जाएंगे कहां? इस समय दुनिया में निवेश के बेहद सीमित विकल्प उनके पास हैं।