ऐसा नहीं कि हमने प्रगति व उन्नति नहीं की है। हमारी आधी से ज्यादा आबादी तो उस समय जन्मी भी नहीं थी, जब 1991 में देश दिवालियापन की कगार पर था। हमारे नाकारा नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों ने तब तक अर्थव्यवस्था को बरबाद कर दिया था। दिक्कत यह है कि तीन दशक बाद खोखली बातों व नारों से हम अपनी अर्थव्यवस्था को चीन जैसी मजबूत नहीं, बल्कि पाकिस्तान जैसी खोखली बनाते जा रहे हैं, जहां आटे की बोरी के लिए लोग भीड़ में कुचल दिए जाते हैं तो इंशा-अल्लाह कह दिया जाता है। यह सही है कि गूगल से लेकर विश्व बैंक व माइक्रोसॉफ्ट जैसे तमाम वैश्विक संगठनों का नेतृत्व भारतीय मूल के लोग कर रहे हैं। लेकिन अब वे भारतीय नहीं, बल्कि अमेरिकी हैं। उनका नाम लेकर हम खुद को भ्रम व धोखे में नहीं रख सकते। यकीनन, भारत में विश्वगुरु से लेकर दुनिया की महाशक्ति तक बनने की सामर्थ्य है। लेकिन श्रम, पूंजी, भूमि व उद्यमशीलता के चारों कारकों को साधना पड़ेगा। याद करें कि साल 2004 में उछाले गए इंडिया शाइनिंग के नारे का क्या हश्र हुआ था। कहीं वैसा ही हश्र 2024 में अभी उछाले जा रहे नारों का न हो जाए! अब शुक्रवार का अभ्यास…
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