देश में आर्थिक विकास की उलटबांसी चल रही है। खुद सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में कृषि में हमारी 44.1% श्रमशक्ति को रोजगार मिला हुआ था और मैन्यूफैक्चरिंग में 12.1% को। वित्त वर्ष 2021-22 तक विकास की ऐसी कर्मनाशा बही कि कृषि में लगी श्रमशक्ति बढ़कर 45.5% और मैन्यूफैक्चरिंग में घटकर 11.6% हो गई। श्रमशक्ति से बाहर निकलकर देखें तो देश की 60-70% आबादी अब भी किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर है। फिर भी कृषि की घनघोर उपेक्षा हो रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि किसानो की आय 2015 से 2022 के बीच दोगुनी कर दी जाएगी। लेकिन खेती से किसान परिवारों की आय 2012-13 से 2018-19 के बीच 1.4% घट गई। बाद के आंकड़े ही नहीं आए। इस दौरान गांवों में पुरुषों की बेरोज़गारी 1.7% से बढ़कर 5.6% और महिलाओं की 1.7% से बढ़कर 3.5% हो गई। 2003-04 से 2012-13 के दौरान प्रमुख फसलों का एमआरपी औसतन 8-9% सालाना बढ़ा था, जबकि 2013-14 से 2023-24 के दौरान औसतन लगभग 5% सालाना ही बढ़ा है। जिस प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का खूब ढिढोरा पीटा जाता है, उसका बजट आवंटन 2020-21 में ₹75,000 करोड़ था। इसे 2024-25 तक घटाते-घटाते ₹60,000 करोड़ कर दिया गया है। हमारे किसान यूं ही नहीं आंदोलित हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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