हमारे अवध के गांवों में एक कहावत चला करती थी। मालूम नहीं, अब खेल-खलिहान व चरागाहों के उजड़ जाने के बाद क्या हाल है? वो कहावत यूं थी कि पढ़ब-लिखब की ऐसी-तैसी, छोलब घास चराउब भैंसी। मतलब आप समझ ही गए होंगे। लेकिन शेयर बाजार को समझना और निवेश का कौशल सीखना है तो पढ़ाई-लिखाई की ऐसी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यहां इतने कारक काम कर रहे होते हैं कि कुछ को छोड़ देने से नतीजा कुछ का कुछ निकला जाता है। फिर हम करमगति को दोष देते लगते हैं और कबीर के शब्दों में कह पड़ते हैं कि करमगति टारै नाहिं टरी क्योंकि मुनि वशिष्ठ ते पंडित ज्ञानी, सोचिके के लगन धरि। सीताहरण मरण दशरथ को, वन में विपति परी। लेकिन हमारे करम सही हों, इसके लिए सही ज्ञान का होना जरूरी है। तो आइए बीते दिनों में सामने आए कुछ सूत्रों पर एक बार फिर गौर कर लें…
- किसी कंपनी के होने का मूल मकसद होता है नोट बनाना और कंपनी को स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराने का मकसद होता है, उसके स्वामित्व को जनता में बिखेर कर पूंजी की सुलभता व लाभ सुनिश्चित करना और कमाए गए लाभ को लाभांश या अन्य तरीकों से अपने शेयरधारकों तक पहुंचाना। अगर कोई लिस्टेड कंपनी लाभ नहीं कमा रही है तो उसके शेयरों में मूल्य खोजना खुद को धोखे में रखना या भयंकर रिस्क लेना है।
- किसी कंपनी का शेयर बढ़ेगा या नहीं, यह मोटे तौर पर तीन बातों से तय होता है। एक, कंपनी की कमाई या लाभ कितना बढ़ रहा है। दो, उससे आगे की अपेक्षाएं या उम्मीदें क्या हैं। और तीन, बाजार में उसको लेकर भावना क्या है, बाजार उसकी कितनी कद्र करता है।
- कंपनियां आमतौर पर कंसोलिडेटेड आधार पर न जाने कहां-कहां के धंधों को मिलाकर आंकड़ों की सुंदर तस्वीर पेश कर देती हैं। बहुत सारी रिसर्च व ब्रोकर फर्में भी इन्हीं कंसोलिडेटेड नतीजों को आधार बनाकर अपनी सिफारिशें करती हैं। लेकिन असली तस्वीर निकलती है कंपनी के स्टैंड-एलोन नतीजों से। विश्लेषक या ब्रोकर फर्में कुछ भी कहें, लेकिन बाजार चूंकि सामूहिक समझ में सबसे उम्दा व तेज समझ से चलता है, इसलिए वह सब समझता है। इसीलिए ब्रोकर फर्में हमारे जैसे आम निवेशकों को तो झांसा देने में सफल हो जाती हैं, लेकिन वे बाजार के स्थाई खिलाड़ियों को चरका नहीं पढ़ा पातीं।
- यह शेयर बाजार है प्यारे। यहां बड़ा अजब-गजब होता रहता है। चांदी भले ही इधर पिटने लगी हो, लेकिन सोने की चमक अभी बाकी है। फिर भी सोने के धंधे में लगी कंपनियों को बाजार से कायदे का भाव नहीं मिल रहा। ज्यादातर कंपनियों के शेयर इस समय 10 से कम के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं। पी/ई अनुपात का मतलब होता है कि निवेशक कंपनी के एक रुपए के शुद्ध लाभ के लिए कितना भाव लगाने को तैयार हैं। जैसे, वैभव जेम्स का पी/ई अनुपात अगर 3.8 है तो निवेशक उसके एक रुपए के लाभ पर केवल 3.8 रुपए का भाव देने को तैयार हैं। शेयर के बढ़ने के लिए कंपनी की कमाई के साथ बाजार या निवेशकों की यह धारणा बहुत मायने रखती है।
- शेयर बाजार में लाभ कमाने के लिए खरीद से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है सही वक्त पर निकल जाना। यकीनन, हम लंबे समय के लिए निवेश करते हैं। लेकिन मान लीजिए, हमने 20-30 फीसदी रिटर्न का अपना लक्ष्य कम समय में ही हासिल कर लिया तो बिना और लालच किए हमें बेचकर मुनाफा कमा लेना चाहिए। नहीं तो हम बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा पाते।