बाज़ार बढ़ जाता है तो दराज़ में रखी विशेषज्ञों की व्याख्याएं बाहर निकलकर फड़फड़ाने लगती हैं। वे बताते हैं कि मुद्रास्फीति घट रही है, ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला रुक चुका है, वैश्विक अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है, देश में राजनीतिक स्थिरता है, यूक्रेन पर रूस का हमला खत्म हो सकता है, आदि-इत्यादि। बाज़ार अचानक गिर जाए तो दराज़ से विशेषज्ञों की व्याख्या का दूसरा सेट निकल आएगा। सब बकवास है। पारम्परिक ज्ञान कहता है कि कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है तो उनके शेयर चढ़ते हैं और जिनके सम्मिलित असर से शेयर सूचकांक बढ़ जाते हैं। चूंकि हम मुनाफे या ईपीएस को साफ-साफ नाप व देख सकते हैं, इसलिए उसको ज्यादा अहमियत दे देते हैं। लेकिन हकीकत में कंपनियों का मुनाफा या ईपीएस केवल एक कारक है। शेयरों के भाव अनेक आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें भी सबसे प्रभावशाली कारक है एफआईआई के जरिए आता विदेशी धन का प्रवाह। अब मंगलवार की दृष्टि…
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