प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनके तमाम मंत्री-संत्री दावा कर रहे हैं कि 2014 से पहले भारत दुनिया की उन पांच नाजुक अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा था जो विकास की फंडिंग के लिए अविश्सनीय विदेशी निवेश पर निर्भर थे। लेकिन साथ ही उनका दावा है कि 2014 से 2023 के बीच देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) दोगुना होकर 596 अरब डॉलर रहा है। इतना नकलीपना क्यों? पहले जो विदेशी निवेश कमज़ोरी की निशानी था, वही इनके शासन में मजबूती का प्रतीक कैसे बन गया! मोदी खांटी प्रचारक हैं। इसलिए वे यह नहीं बता सकते कि 14 सितंबर 2018 को एक बैठक में रिजर्व बैंक के तब के गवर्नर ऊर्जित पटेल ने उनके मुंह पर कहा था कि, “2013 में भारत दुनिया के पांच नाजुक देशों में से एक था। लेकिन राजकोषीय घाटे, चालू खाते की स्थिति और रुपए के प्रदर्शन को देखें तो भारत 2018 में दुनिया की पांच सबसे बदतर काम कर रही क्षीण अर्थव्यवस्था बन गया है।” मोदी इससे इतना चिढ़ गए कि महीने भर बाद भी ऊर्जित पटेल को इस्तीफा देना पड़ा। वैसे, एफडीआई को दोगुना करने का दावा भी हवा-हवाई और गुमराह करनेवाला है। वित्त वर्ष 2007-08 में एफडीआई हमारे जीडीपी का 3.5% था, जो 2022-23 में 1% तक सिमटकर रह गया है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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