कंपनियां भी हमारे-आप जैसे इंसान ही चलाते हैं तो जिस तरह अनागत का भय हमें कभी ज्योतिष तो कभी न्यूमेरोलॉजी के चक्कर में खींच ले जाता है, वैसा बहुत सारी कंपनियों के साथ भी होता है। जैसे, नाम सीधा-सा है एस डी एल्यूमीनियम। इसे पढ़ेंगे और हिंदी में लिखेंगे भी ऐसे, लेकिन अंग्रेजी में इसे कर दिया – Ess Dee Aluminium। खैर, हमें नाम से क्या, हमें तो काम से काम है। एस डी एल्यूमीनियम का शेयर (बीएसई – 532787, एनएसई – ESSDEE) अभी मात्र 6.19 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शुक्रवार को 415.75 रुपए पर बंद हुआ है, जबकि कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 67.14 रुपए है। शेयर के बाजार भाव को इस टीटीएम ईपीएस से भाग देने पर यही पी/अनुपात निकलता है। इसका मतलब यह हुआ कि इस स्टॉक का मूल्यांकन आकर्षक है और इसमें निवेश करने में फायदा मिल सकता है।
कंपनी और उसका धंधा भी दुरुस्त है। दवाओं, खाद्य वस्तुओं और एफएमसीजी उत्पादों की पैकेजिंग में इस्तेमाल होनेवाली एल्यूमीनियम फॉयल बनाती है। इन क्षेत्रों की लगभग हर बड़ी कंपनी इसकी ग्राहक है। एचडीएफसी सिक्यूरिटीज ने कंपनी प्रबंधन से मिलने के बाद जारी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अगले तीन साल में कंपनी के विकास का रथ तेजी से आगे बढ़नेवाला है। कंपनी का मुख्य ग्राहक फार्मास्युटिकल क्षेत्र है जिसके अगले तीन सालों में 15 फीसदी से ज्यादा रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है। चूंकि एस डी एल्यूमीनियम देश में अमेरिकी दवा नियामक संस्था, यूएसएफडीए से मान्यता-प्राप्त गिनीचुनी पैकेजिंग कंपनियों में शामिल है, इसलिए निर्यात होनेवाली दवाओं के ऑर्डर इसे मिलते ही रहते हैं। कंपनी के अन्य दो उपभोक्ता उद्योगों – खाद्य वस्तुओं व एफएमसीजी में अगले तीन सालों में 20 फीसदी से ज्यादा सालाना बढ़त का अनुमान है।
कंपनी के तीन संयंत्र दमन, कमरहटी और होयरा में है। कमरहटी का संयंत्र उसने इंडिया फॉयल्स के अधिग्रहण से हासिल किया है। कंपनी क्षमता विस्तार पर अगले दो सालों में 430 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। इसके बाद वित्त वर्ष 2014-15 तक उसकी क्षमता मौजूदा स्तर से दोगुनी हो जाएगी।
कंपनी का परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) हमेशा 28 फीसदी से ऊपर ही रहा है। कारण, वह हर बढ़ी लागत आसानी से अपने ग्राहकों पर डाल देती। वह ऐसा इसलिए कर पाती है क्योंकि अमेरिकी बाजार में निर्यात करनेवाली दवा कंपनियों से पैकेजिंग सामग्री उसी से झक मारकर लेनी पड़ती है क्योंकि उसके पास यूएसएफडीए की मान्यता है। दूसरे कंपनी को एल्यूमीनियम लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) के भावों पर मिलता है। इसे शुरुआती तौर पर फॉयल स्टॉक सप्लायर अदा करते हैं और इसमें जो भी घट-बढ़ होती है, कंपनी उसे अपने ग्राहकों पर डाल देती है।
कंपनी के साथ बस एक समस्या है कि पिछले दो सालों में उसके ऊपर कुल 178.70 करोड़ रुपए क कर्ज चढ़ गया है। हालांकि कंपनी प्रबंधन इसे इंडिया फॉयल्स के अधिग्रहण का तात्कालिक नतीजा मानता है। इसमें उसे 36 महीने बाद तक के पोस्ट-डेटेड चेक मिले थे। कंपनी प्रबंधन का कहना है कि वह ऋण की स्थिति को दुरुस्त करने में लगा है और जल्दी ही सारा मामला पटरी पर आ जाएगा।
कंपनी ने दिसंबर 2010 की तिमाही में 177.65 करोड़ रुपए की आय पर 33.11 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। साल भर पहले की तुलना में आय व लाभ दोनों में इजाफा हुआ है। इससे पहले वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी ने 467.68 करोड़ रुपए की आय पर 92.43 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हासिल किया था। कंपनी की कुल इक्विटी 32.05 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 59.50 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है, जबकि एफआईआई के पास इसके 21.42 फीसदी और डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) के पास 10.64 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के 2.50 फीसदी शेयर कॉरपोरेट निकायों के पास हैं। इस तरह सचमुच की पब्लिक या रिटेल निवेशकों के पास कंपनी के महज 5.94 फीसदी शेयर हैं।