आज ईद-उल-फितर के मौके पर शेयर बाज़ार बंद है। ईद का यह त्योहार खुशी, एकता और सद्भाव का प्रतीक है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था व शेयर बाजार के लिए सकारात्मक संदेश लेकर आता है। लेकिन बेहद दुखद है कि सत्ता में बैठी भाजपा के कारिंदों ने देश भर में जगह-जगह इस त्योहार के सद्भाव को तोड़ने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश के संभल से लेकर मेरठ तक उपद्रवियों के साथ ही प्रशासन ने भी साम्प्रदायिक माहौल में तनाव घोलने की कोशिश की। वहीं, महाराष्ट्र में तो बीड जिले के एक गांव की मस्जिद में 22-24 साल के दो उपद्रवी युवकों विजय राम गवहाने और श्रीराम अशोक सगड़े ने जिलेटिन रॉड लगाकर धमाका कर दिया और बेखौफ होकर इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। धमाके से मस्जिद का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन गांव के लोगों ने मिलकर नई टाइल्स लगाकर तुरंत उसकी मरम्मत कर दी। अच्छी बात यह है कि गांव के बड़े-बूढ़ों ने माहौल को खराब होने से बचा लिया। वरना हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क सकते थे…
सवाल उठता है कि विकसित भारत का नारा देनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमाम राज्यों में सत्तारूढ़ उनकी पार्टी भाजपा की सरकारें देश के राजनीतिक व सामाजिक माहौल को सायास क्यों इतना बिगाड़ रही हैं? भारतीय समाज इस तरह बंटा रहेगा तो वह न तो आर्थिक विकास हासिल कर सकता है और न ही देश की एकता मजबूत रह सकती है। ईद का संदेश है – एकता, स्थिरता और आशावाद। भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार दोनों ही दीर्घकालिक तौर पर मजबूत बने रहने के संकेत दे रहे हैं। लेकिन सत्ता की राजनीति इस एकता को खंडित क्यों करना चाहती है? मुश्किल यह है कि माहौल बिगाड़ने में प्रशासन में परोक्ष रूप से राजनीति का साथ दे रहा है।
यकीनन, देश के व्यापक अवाम और निवेशकों का अब भी भारतीय अर्थव्यवस्था की मूलभूत मजबूती पर विश्वास बरकरार है। आज वित्त वर्ष 2024-25 समाप्त हो रहा है। इस दौरान 1 अप्रैल 2024 से 28 मार्च 2025 तक तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भारतीय शेयर बाज़ार ने करीब 5% का रिटर्न दिया है और बाज़ार के पूंजीकरण में करीब 25.90 लाख करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। लेकिन केंद्र सरकार ने हमारी अर्थव्यवस्था को अच्छी तरह चलाया होता तो यह रिटर्न ज्यादा हो सकता था। वह अंतरराष्ट्रीय माहौल को ध्यान में रखते हुए ठीक से नीतियां बनाती तो सितंबर 2024 के बाद से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) हमारे बाज़ार से इस कदर नहीं भागते और शेयर बाजार में निवेशकों को तगड़ा धक्का नहीं लगा होता।
खैर, शेयर बाजार तो दीर्घकालिक आर्थिक विकास, सुधारों और कॉरपोरेट प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया देता है। तात्कालिक चुनौती यह है कि भारत सरकार अमेरिका की तरफ से छेड़े गए टैरिफ युद्ध का जवाब कैसे देती है। इसी पर हमारे कॉरपोरेट क्षेत्र की लाभप्रदता और देश की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा निर्भर करेगी। ईद के मौके पर हमें भरोसा रखना चाहिए कि एकता और आपसी विश्वास के साथ हमारा प्यारा देश भारत न केवल सामाजिक सद्भाव बनाए रखेगा बल्कि आर्थिक प्रगति की ओर भी बढ़ता रहेगा।
निवेशकों को चाहिए कि वे अल्पकालिक उथल-पुथल से प्रभावित हुए बिना दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करें। भारतीय शेयर बाजार में मजबूत वृद्धि की संभावनाएं मौजूद हैं, खासकर बैंकिंग, आईटी, इंफ्रास्ट्रक्चर और उपभोक्ता क्षेत्रों में। दंगों का माहौल बाजार की भावना पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल सकता है। ऐसी परिस्थितियों में निवेशक अनिश्चितता से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे अल्पकालिक अस्थिरता बढ़ सकती है। फिर भी, बाजार का दीर्घकालिक रुझान मजबूत घरेलू भागीदारी और आर्थिक सुधारों पर टिका हुआ है। उम्मीद है कि बाज़ार कल 1 अप्रैल की ट्रेडिंग के साथ नए वित्त वर्ष 2025-26 की शानदार शुरुआत करेगा।