अर्थव्यवस्था लस्त, फिर भी बाज़ार मस्त!

मानते हैं कि अर्थव्यवस्था या जीडीपी के बढ़ने और शेयर बाज़ार के चढ़ने में सीधा रिश्ता है। लेकिन हकीकत ऐसी नहीं दिखती। चीन का जीडीपी जब जमकर बढ़ रहा था, तब वहां का शेयर बाज़ार धीमी गति से चल रहा था। भारत के जीडीपी के विकास दर जब ज्यादा चल रही थी, तब सुस्त गति से बढ़ते अमेरिका के शेयर बाज़ार ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भारत से कहीं ज्यादा रिटर्न दिया था। इस समय भी जब हमारा बाज़ार ऐतिहासिक शिखर पर चढ़ा है, तब देश की आर्थिक स्थिति कहीं से मजबूत नहीं है। अर्थव्यवस्था में 55% योगदान देनेवाली निजी खपत का हाल बुरा है। शीर्ष के 5-10% लोगों की खपत ही दुरुस्त है। बढ़ती महंगाई और घटती आय ने व्यापक अवाम के हाथ बांध दिए हैं। दुनिया के बाज़ार में भारत की होड़ लेने की क्षमता सुस्त पड़ी है। इसका प्रमाण है कि हमारे व्यापारिक निर्यात घट रहे हैं। बीते वित्त वर्ष 2022-23 में हमारी कृषि तो 4% बढ़ी है, लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र मात्र 1.3% बढ़ा है। कैसे सुधरेगी ये हालत? अब शुक्रवार का अभ्यास…

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