मोदीराज में अर्थव्यवस्था पर चढ़ाई गई झूठ की कलई अब उतरने लगी है। केंद्र सरकार के झोंको-झोंक पूंजीगत खर्च और पीएलआई जैसे सब्सिडी प्रोत्साहन व कॉरपोरेट टैक्स में रियायत के बावजूद निजी क्षेत्र ठंडा पड़ा है क्योंकि देश के भीतर मांग नहीं बढ़ रही है, जबकि बाहर मंदी जैसे हालात हैं। इसलिए वो पूंजी निवेश नहीं बढ़ा रहा। इसे दर्शानेवाले सकल स्थाई पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) का आंकड़ा बढ़कर भी जीडीपी के 31% तक पहुंचा है जो मनमोहन सरकार के आखिरी वित्त वर्ष 2013-14 के न्यूनतम स्तर के आसपास है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लगातार दो साल से घट रहा है। आम लोगों की बचत पांच दशक के न्यूनतम पर है और खपत पूरा करने के लिए उन्हें बैंकों व एनबीएफसी से उधार लेना पड़ रहा है। सरकार पर चढ़ा कर्ज जीडीपी के 82% तक पहुंच चुका है, जबकि विशेषज्ञों की समिति की सिफारिश थी कि इसे जीडीपी के 60% से ऊपर नहीं बढ़ने देना चाहिए। मेक-इन इंडिया का बड़ा हल्ला मचा। कहा गया है कि एप्पल के भारत में बने फोन जमकर निर्यात हो रहे हैं। हकीकत यह है कि यह वियतनाम से हो रहे एप्पल फोन के निर्यात के पांचवें हिस्से से भी कम हैं। दावा किया गया कि दुनिया की कंपनियों ‘चीन प्लस वन’ रणनीति में भारत तो तवज्जो देंगी। लेकिन इस मामले में भी बांग्लादेश और वियतनाम जैसे छोटे देश तक भारत पर बाज़ी मार ले गए। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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