मिट रही है बढ़ने की एक-एक बाधा

आखिरकार नॉर्थ ब्लॉक में राजनीतिक गतिरोध टूटता हुआ दिख रहा है। आठ सालों बाद वित्त मंत्रालय विनिवेश का पल्लू छोड़कर पूरी तरह निजीकरण की तरफ निर्णायक कदम बढ़ा रहा है। स्कूटर्स इंडिया को बेचने का फैसला हो चुका है। राज्यों के चुनाव नतीजों ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की जांच व कार्रवाई को लेकर सारी उहापोह खत्म कर दी है।

संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) इसकी जांच कर ही रही है। डीएमके को अवाम ने सत्ता से बाहर कर दिया। डीएमके प्रमुख की प्यारी बेटी कनिमोड़ी तिहाड़ में है। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी जयललिता से लेकर ममता बनर्जी के बढ़ते कद को स्वीकार उनको वाजिब अहमियत देने को तैयार हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अब केवल उत्तर प्रदेश का सिरदर्द बचा है, जहां वह 2012 के विधानसभा चुनावों में धमाल मचाने के अभियान में अभी से लग गई है।

पहले बीजेपी का सफाया हुआ। अब लेफ्ट भी किनारे लग गया। इस तरह आर्थिक सुधारों की दो खास बाधाएं निपट चुकी हैं। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और घोटालों ने कांग्रेस की छवि को धूल चटा रखी है। लेकिन यही वो मौका भी है जहां से वह सारी धूल छाड़-पोछ कर तेजी से उठ सकती है। हमें लगता है कि कांग्रेस अब साहसी सुधारों की राह अपनाएगी क्योंकि उसे रोकने वाला कोई नहीं है। साथ ही सरकार रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार के खिलाफ नए कानूनी प्रावधान कर सकती है। आयकर विभाग और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के अनुभव से हम जानते हैं कि ऐसा होना पूरी तरह संभव है। हाल ही में उसने छह साल से अटकी भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र संधि का अनुमोदन किया है।

हम बराबर कहते रहे हैं कि सरकार ने अभी तक निजीकरण का जो तरीका अपना रखा है वो गलत है क्योंकि उसमें सरकार खुद ही अपने मूल्यांकन को मार रही है। विनिवेश से सरकार को कुछ धन मिल तो जाता है। लेकिन वो कभी भी बड़ी कामयाबी नहीं बनता क्योंकि मूल्य कम रखे जाते हैं। फिर भी बीमा कंपनियों व सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सब्सक्राइब कर उसका उद्धार करना पड़ता है। सच कहें तो बाजार इसे पचा नहीं पाता। या, हो सकता है कि यह एफआईआई जैसे बड़े निवेशकों की चाल हो कि वे इस मोर्चे पर सरकार को कामयाब होते नहीं देखना चाहते।

दूसरी तरफ, पूरे निजीकरण से स्थिति बदल जाती है। मारुति, सीएमसी और हिंदुस्तान जिंक – तीनों ही कंपनियों ने जहां निजी निवेशकों को भारी लाभांश दिया है, वहीं सरकार को टैक्स के रूप में कम से कम परोक्ष रूप से दस गुना ज्यादा कमाई हुई है। निजीकरण से सरकार की आय के तीन रास्ते खुलते हैं जिन पर कभी कायदे से गौर नहीं किया गया है। एक तो कंपनी की बिक्री से मिलनेवाला मूल्य। दूसरा, कंपनी को चलाने के खर्च से सरकार को मुक्ति मिल जाती है। और तीसरे, उसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से टैक्स के बतौर भारी राजस्व मिलने लगता है। इसका एकमात्र नुकसान मौजूदा कर्मचारियों पर गिरनेवाली गाज है। लेकिन इससे नई होनेवाली कमाई से निपटा जा सकता है।

हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) और एल एन मित्तल के संयुक्त उद्यम के तहत भटिंडा में 6000 टन की ऑयल रिफाइनरी चालू ही होनेवाली है। इसके आने से रिलायंस इंडस्ट्रीज ज्यादा दक्ष हो जाएगी है और हो सकता है कि इस क्षेत्र में भारी विदेश निवेश आने लगे। असल में, खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस रिफाइनरी के उद्घाटन में दिलचस्पी दिखाई है जो इसकी अहमियत को दर्शाता है। वेदांता समूह पहले ही इस क्षेत्र में आ चुका है। अब एल एन मित्तल के भी आ जाने से रिलायंस इंडस्ट्रीज को कोई चमत्कार दिखाना ही होगा। मीडिया ने इसे इस बात से जोड़कर पेश किया है कि म्यूचुअल फंड अब रिलायंस इंडस्ट्रीज को लंबे निवेश के लिए नहीं, बल्कि ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं।

सरकार के लिए वाजिब यही है कि इक्विटी हिस्सेदारी बेचकर सिरदर्द पाले रखने के बजाय वह पूरी की पूरी कंपनी ही बेच दे। ज्यादातर सरकारी कंपनियों के पास विशाल भूमि संपदा और लाइसेंस है। इसलिए फिरंगी निवेशक पोस्को की तरह नई परियोजनाओं में वक्त जाया करने के बाद सीधे उन्हें खरीद लेना पसंद करेंगे। जैसे, हिंदुस्तान कॉपर को चलाते रहने का सरकार के लिए कोई तुक नहीं है। वह यह कंपनी आसानी से बेचकर निकल सकती है।

राजनीतिक मोर्चे से बाहर देखें तो मानसून समय से आ रहा है। विलय व अधिग्रहण की दौड़ बढ़ रही है। यह सब अच्छा वक्त आने का संकेत है। वेदांता द्वारा केयर्न इंडिया को खरीदने की प्रक्रिया जारी है। आदित्य बिड़ला समूह ने कनोरिया केमिकल्स की एक डिवीजन खरीद ली है। सुनने में आ रहा है कि जॉनसन एंड जॉनसन एक देशी फार्मा कंपनी को 23 करोड़ डॉलर में खरीदने जा रही है। साथ ही सेंट गोबैन गुजरात की एक ग्लास कंपनी को 700 करोड़ रुपए में खरीदने की तैयारी में है। यह सब अर्थव्यवस्था के बढ़ने का असर है।

शेयर बाजार की बात करें तो हमें बाजार की चाल पर कोई अचंभा नहीं हुआ है, जबकि डीजल में मूल्य-वृद्धि का मसला अभी अटका है। वैसे, कल सोमवार, 23 मई को यह फैसला आ सकता है। रोलओवर के चलते बाजार में तेज उतार-चढ़ाव आ रहा है। चाहे कुछ हो जाए, सट्टेबाजी से कभी अपेक्षित रिटर्न नहीं मिल सकता। फिर भी कैश मार्केट में वोल्यूम सूखा पड़ा है तो निवेशक व ट्रेडर डेरिवेटिव्स की तरफ खिंचे चले जा रहे हैं। बाजार में बिक्री की हवा है। इसलिए शॉर्ट सेलर ज्यादा हैं, लांग सौदे करनेवाले कम हैं। सेटलमेंट में केवल चार दिन बचे हैं जिसका इस्तेमाल निफ्टी को 5300 या 5600 तक ले जाने में किया जा सकता है। ऐसा होना कॉल और पुट सौदों की स्थिति पर निर्भर करता है।

हमारा मानना है कि तमाम स्टॉक्स व सूचकांक इस समय खुद को जमाने के दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन विदेशी ब्रोकिंग हाउसों की तरफ से इनको डाउनग्रेड किए जाने का क्रम जारी है। बड़े निवेशकों के निकलने से उन निवेशकों को खरीदने का अच्छा मौका मिल जाता है जो बढ़त की धारणा रखते हैं। अभी शेयर बाजार में रिटेल निवेशकों व एफआईआई के निवेश का स्तर 2007 से नीचे है। यह साफ दर्शाता है कि बाजार के गिरने की गुंजाइश सीमित है। चालू साल के लिए कमतर आंकी गई लाभ वृद्धि भी 18 फीसदी निकलती है। इसलिए साल के अंत तक सेंसेक्स के 24,000 पर पहुंच जाने की हमारी सोच पर कोई आंच नहीं आई है।

अभी के स्तर से बाजार के गिरने की सीमा मात्र 10 फीसदी है, जबकि उठने की हद 60 फीसदी तक जाती है। इसलिए निवेश करने की जमीन तैयार है। चाहें तो इस पर अपनी बचत के फलने-फूलने की बीज बो सकते है। बहुत से निवेशक ऐसा कर भी रहे हैं। हम तो पूरी तरह खरीद के पक्ष में हैं। आनेवाले वक्त में वित्त मंत्रालय की तरफ से कुछ चौंकनेवाली पहल हो सकती है।

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