विकसित भारत का संकल्प शुद्ध जुमला

भारत अगर दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है तो अपनी अंतर्निहित ताकत के दम पर है। हम आज अगर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले कुछ सालों में तीसरे नंबर पर आ जाएंगे तो यह हमारी प्राकृतिक, भौगोलिक व मानव संपदा और उद्यमशीलता की देन है, किसी सरकार या नेता की मेहरबानी नहीं। देश में मनमोहन सिंह तो छोड़िए, कोई कम्युनिस्ट सरकार भी होती तो यही होता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी उसी तरह इसका श्रेय लेने पर आमादा हैं जिस तरह इन्होंने 13 साल मुख्यमंत्री रहने के दौरान गुजरातियों की उद्यमशीलता का श्रेय लिया था। अब अपने खास अंदाज़ में लम्बी फेंकते हुए 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बना देने के संकल्प की बात कर रहे हैं। अपने पत्र के अंतिम पैरा में उन्होंने यह जुमला दोहराया है। लेकिन विकसित भारत के साथ सबसे बड़ा पेंच है कि यह लक्ष्य हासिल करके लिए जीडीपी नहीं, बल्कि प्रति व्यक्ति आय का मानक हासिल करना पड़ेगा। रिजर्व बैंक के अनुसार साल 2047 में हम विकसित देश तभी बन पाएंगे, जब हमारी प्रति व्यक्ति आय 21,664 डॉलर हो जाए। हमारी प्रति व्यक्ति आय अभी 2393 डॉलर है। इसे 24 सालों तक 9.61% की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ना होगा। तभी हम विकसित देश बन सकते हैं, कमीशन खाकर सड़क, बंदरगाह व एयरपोर्ट बनाकर नहीं। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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