देश में बेरोज़गारों की संख्या बहुत है। छिपी हुई बेरोज़गारी उससे भी ज्यादा है। श्रमशक्ति की भागीदारी बहुत कम है। महिला श्रमशक्ति की भागादारी तो बेहद कम है। जीडीपी में कृषि का हिस्सा महज 14% है, लेकिन देश का तकरीबन 50% रोज़गार उसी में मिला हुआ है। जब तक कृषि से निकालकर लोगों को उद्योग-धंधों में नहीं लगाया जाएगा, तब तक हमारी अर्थव्यवस्था का विकास इतना नहीं हो सकता कि हम 2047 तक विकसित देश बन जाएं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि हम अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा नहीं उठा रहे, तभी 6-7% की विकास दर पर अटके हुए हैं। चीन और दक्षिण कोरिया ने डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाया तो दशकों तक 9-10% सालाना की गति से बढ़ते रहे। बेरोज़गारी कोई राजनीतिक समस्या नहीं, जिसे चुनाव जीतने के लिए सुलझाना है, बल्कि इसे सुलझाना विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए ज़रूरी है। चंद उद्योगपतियों के विकास से भारत विकसित नहीं बन सकता, न ही चिप निर्माण जैसे उद्योगों पर अरबों डॉलर की सब्सिडी लुटाकर यह लक्ष्य हासिल होगा। इसे किसी हवाबाज़ी से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे उद्योगों और कुशल श्रमशक्ति के दम पर ही हासिल किया जा सकता है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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