आंकड़े गवाह हैं कि पिछले सात साल में सड़क पर आ गए नौजवानों की संख्या लगातार बढ़ती गई है। इसी का एक हिस्सा दंगाई या उन्मादी भीड़ बन जा रहा है। ऊपर से कोई राजनीतिक संगठन इन्हें दिन के 200-250 से लेकर 500 रुपए दे दे तो करैला नीम चढ़ा की स्थिति बन जाती है। लेकिन यह देश के आर्थिक विकास के लिए बेहद घातक स्थिति है। यह हमारी युवा शक्ति को, हमारी डेमोग्राफी की ताकत को नफरत व उन्माद के परनाले में बहा देने जैसा कृत्य है। नौजवान हाथ अगर मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़े काम-धंधे में नहीं लगते तो भारत को विकसित देश बनाने का सपना कभी नहीं पूरा हो सकता। यह सच है कि भारत के पास दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ती युवा आबादी है। लेकिन इससे अपने-आप नौजवानों को ज्यादा काम मिलने की गारंटी नहीं हो जाती। भारत का श्रमबल इसलिए बूढ़ा होता जा रहा है क्योंकि नौजवानों को श्रमबाज़ार में जगह नहीं मिल रही और बुर्जुगों को जब काम-धंधा छोड़ आराम करना चाहिए, तब भी उन्हें पारिवारिक ज़िम्मेदारियां निभाने के लिए श्रम बाज़ार में खटना पड़ रहा है। यह न आज के लिए अच्छा है न कल के लिए। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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