मोदी सरकार भ्रष्टाचार को सदाचार में कैसे बनाती रही है, इसकी सटीक मिसाल है चुनावी बांड। जिसे जनता जनार्दन कहा जाता है, उसे पता ही नहीं कि किस देशी-विदेशी कंपनी ने किस राजनीतिक पार्टी को कितना चंदा दे दिया। बस, देनेवाला जानता है किसको दिया और पानेवाला जानता है कि किसने दिया। डील हो गई। डंके की चोट पर कॉरपोरेट रिश्वतखोरी को चुनावी फंडिंग का वैधानिक हिस्सा बना दिया गया। लेकिन सरकार ने कहा कि चुनावी बांड की स्कीम पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करती है। भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने इस स्कीम को असंवैधानिक ठहरा दिया। चंडीगढ़ मेयर चुनाव की धांधली ने भी साबित कर दिया कि भाजपा के लिए लोकतंत्र येनकेन प्रकारेण साम, दाम, दंड, भेद से सत्ता हथियाने का ज़रिया है ताकि वह जनधन की अबाध लूट जारी रख सके और देश की अमूल्य संपत्ति अपने चहेतों के हवाले करती रहे। इसके लिए 81.35 करोड़ गरीबों को पांच किलो मुफ्त राशन, 11.8 करोड़ किसानों को साल में 6000 रुपए की सम्मान निधि देना और भारत को 2047 तक विकसित देश बना देने का नारा उछालना बहुत छोटी कीमत है। मोदी सरकार जवाबदेही में कोई यकीन नहीं रखती। वह कहते जाने में यकीन रखती है, करने में नहीं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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