शिखर सम्मेलन की समाप्ति के साथ भारत से जी-20 की रौनक उतरने लगी है। अब उसके नेतृत्व की सफलता के मूल्यांकन का दौर चल रहा है। हालांकि भारत की अध्यक्षता का कार्यकाल अभी 30 नवंबर तक चलेगा। बड़ी सफलता यह है कि सम्मेलन के पहले ही दिन संयुक्त दिल्ली घोषणा पर सर्वसम्मति बन गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोला – मैं जी-20 देशों के नेताओं के डिक्लेरेशन को अपनाने का प्रस्ताव रखता हूं। फिर अगली ही सांस में बोले – मैं इसे एडॉप्ट किए जाने की घोषणा करता हूं। सब कुछ झटपट, खटाखट। संयुक्त घोषणा में लिखे शब्दों से रूस भी खुश और जी-7 के अमीर व पश्चिमी देश भी खुश। लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत के तमाम राज्यों के 60 शहरों में साल भर चली जी-20 के प्रतिनिधियों की 200 से ज्यादा बैठकों को किसी नेता व सरकार की छवि को चमकाने का साधन बना लिया गया या इससे सममुच वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में जी-20 के महत्व को रेखांकित किया जा सका है? क्या इससे विकासशील देशों के विदेशी ऋण, जलवायु परिवर्तन और टेक्नोलॉज़ी व बाज़ार तक पहुंच जैसे मुद्दों का कोई समाधान निकला है? अब सोमवार का व्योम…
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