पहले ज्योतिष के आधार पर अफवाह फैलाई गई कि बाजार 13 अगस्त को धराशाई हो जाएगा। फिर 1937 में हादसे का शिकार हुए एक जर्मन जहाज हिन्डेनबर्ग के नाम पर बने टेक्निकल अपशगुन से डराया गया कि सितंबर में दुनिया के बाजार ध्वस्त हो जाएंगे। अब अपने यहां एक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन चल रहा है जिसमें कहा गया है कि सेंसेक्स 18,600 से आगे नहीं जा सकता और 14,600 अंक तक गिरता चला जाएगा।
इस ‘भविष्यवाणी’ को साबित करने के लिए इधर-उधर की तमाम बातें इस्तेमाल की गई हैं। हालांकि ये तक नहीं पता कि यह प्रजेंटेशन किस एनालिस्ट के दिमाग की उपज है। प्रजेंटेशन में बच निकलने की एक पतली गली भी है कि अगर अभी ऐसा नहीं हुआ तो सेंसेक्स के 23,600 अंक पर पहुंचने पर ऐसा हो जाएगा। बॉस, इस तरह की किंतु-परंतु वाली बात तो तीन साल का बच्चा भी कर सकता है। आप बाजार में जो भी बेच रहो हो, पूरे यकीन और दिल से बेचो। और, फिर कोई चार्ट-वार्ट जारी करो।
हकीकत बड़ी साफ है। शेयर बाजार में पब्लिक होल्डिंग पिछले साल के 9.5 फीसदी से घटकर इस साल 8 फीसदी रह गई है। ऐसी सूरत में बाजार और ज्यादा नीचे नहीं जा सकता। हां, कुछ करेक्शन आ सकता है और निफ्टी 5600 से गिरकर 5400 पर पहुंच सकता है। बाजार में ऐसा होता ही रहता है। सच कहें तो 8000 से 18,000 अंक तक चली बाजार की इस रैली ने अमीर और गरीब का फासला बढ़ा दिया है। अमीर और अमीर हो गए हैं, जबकि गरीब पहले से ज्यादा गरीब। यह भारत की विकासगाथा की फितरत है और इसको लेकर बहुत माथा फोड़ने का कोई मतलब नहीं है।
पब्लिक इश्यू में एक लाख रुपए की सीमा बढ़ाकर दो लाख कर देने से रिटेल भागीदारी कैसे बढ़ सकती है? मुझे नहीं समझ में आता। मान लीजिए, किसी को एचएनआई की श्रेणी में 5 लाख लगाने हैं, वह अब दो लाख के तीन आवेदन डाल देगा और रिटेल का 5 फीसदी डिस्काउंट भी हासिल कर लेगा। और, जिसके पास केवल 10,000 रुपए हैं, वह एलॉटमेंट पाने के लिए किस्मत नहीं आजमा सकता। खैर, यह बहस पत्र नियामक संस्था ने पेश किया है और वह हम से बेहतर समझती होगी।
हालांकि, इससे कहीं ज्यादा जरूरत इस बात की है कि निवेशकों का भरोसा वापस लाया जाए ताकि पब्लिक होल्डिंग 8 फीसदी से बढ़कर कम से कम 10 फीसदी पर आ जाए। अगर हम निस्सान कॉपर, रिसर्जेंट माइनिंग, एस्टर लाइफ, रिलायंस पावर के आईपीओ का जिक्र करें तो मर्चेंट बैंकरों ने बगैर किसी जिम्मेदारी और जवाबदेही के इनका महंगा दाम निकाला, जिसके चलते रिटेल निवेशकों को भारी चपत लगी। इस सूरतेहाल को दुरुस्त किए बगैर रिटेल निवेशक बाजार से दूरी बनाए रखेंगे।
मेरा यकीन मानें। सेंसेक्स 26,000 के पार जाएगा और सभी रिटेल निवेशक तब बाजार में वापस आएंगे, चाहे वो किसान हो, हीरा व्यापारी हो, पानवाला हो या कॉलेज का विद्यार्थी। इतिहास अपने को दोहराएगा। बाजार 30,000-35,000 तक उठने के बाद लुढ़केगा और निवेशक डीमैट के कागजात को ऐसे दिखाएंगे जैसे वे किसी पुरस्कार के तमगे हों।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने रामसरूप इंडस्ट्रीज को उठाकर ट्रेड टू ट्रेड श्रेणी में डाल दिया और शेयर धड़ाधड़ 115 रुपए से गिरकर 70 रुपए पर आ गया। नतीजतन शेयरधारकों की जेब में भारी सुराख हो गया। आखिर, किस आधार पर ऐसा किया जाता है? इसका पैमाना क्या है? यह कब तक ट्रेड टू ट्रेड में रहेगा? सभी रिटेल निवेशकों ने भारी घाटा उठाकर इसे बेचा है क्योंकि ट्रेड टू ट्रेड श्रेणी में डाल दिए गए शेयरों पर कोई फंडिंग नहीं मिलती। असल में, इस बाबत नियम होने के बावजूद 99 फीसदी ब्रोकर ऐसे शेयरों में ट्रेड तक नहीं करते क्योंकि उन्हें इसके लिए एक्सचेज को पहले मार्जिन भरना पड़ता है। पारदर्शिता कहां है? आखिरकार चोट खाता है रिटेल निवेशक जो किसी कंपनी की निहित क्षमता के आधार पर निवेश करने से भी कन्नी काटने लगता है। उसके सामने यही विकल्प बचता है कि वो बिजनेस चैनलों पर फ्लैश की गई खबरों के आधार पर ट्रेडिंग के लिए शेयर खरीदे और नफा या नुकसान उठाकर उन्हें तुरंत बेच ले।
बहुत से सरकारी कर्मचारी भी डिलीवरी लेने से डरते हैं और इसी वजह से केवल फ्यूचर्स सौदों में ही ट्रेडिंग कर रहे हैं। मैं ऐसे कम से कम 150 कर्मचारियों को जानता हूं। क्या उनकी डगर, उनका तौर-तरीका सही है? इसने कम से कम रिटेल निवेशकों के भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। आज के हालात में बिचौलियों का धंधा चमकता जा रहा है। उनके और कंपनी प्रवर्तकों के बीच फाइव स्टार होटलों में सौदेबादियां हो रही हैं। हर फाइव स्टार होटल इसका साक्षी है।
काम करने का फल हमेशा मीठा नहीं होता। लेकिन इतना तय है कि कोई भी मीठा फल बिना काम किए नहीं मिलता।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)