इसे राजनीतिक अवसरवाद की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहेंगे कि जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले चुनावी सभाओं व रैलियों में खुद को अति पिछड़ा बताते थे, वे अब कहने लगे हैं कि भारत में केवल चार ही जातियां हैं – गरीब, युवा, महिलाएं और किसान। उनमें यह बदलाव तब आया, जब विपक्ष के इंडिया गठबंधन ने जाति जनगणना का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठा दिया। प्रधानमंत्री पिछड़ी व दलित जातियों की गोलबंदी को रोकने के लिए नई ‘जातियां’ गिना देते हैं। लेकिन नहीं बताते कि उनके दस साल के शासन में इन ‘जातियों’ का कितना भला हुआ है। गरीबों पर दावा है कि उनकी सरकार ने पिछले दस साल में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी (एमपीआई) से बाहर निकाल दिया है। लेकिन एमपीआई का सारा डेटा फर्जी है क्योंकि राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे ने 2011-12 के बाद से अवाम के बीच खपत के खर्च का कोई सर्वेक्षण ही नहीं किया है। युवा का हाल यह कि हमारे 25 साल तक के 42.3% ग्रेजुएट बेरोज़गार हैं। महिलाओं की हालत यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2022 में देश में महिलाओं के खिलाफ 4.45 लाख अपराध हुए थे। श्रम शक्ति में महिलाओं की भागादारी बहुत बढ़कर भी 37% तक तब पहुंची, जब घर के मुफ्त काम को भी रोज़गार मान लिया गया। किसानों की त्राहि-त्राहि तो आज सारा देश देख-सुन ही रहा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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