कृषि और वाणिज्य मंत्रालय में करीब दो महीने तक चली खींचतान के बाद आखिरकार सरकार ने अब कपास का निर्यात खोल दिया है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरेन शेठ के मुताबिक इससे कपास के दाम 10 से 15 फीसदी बढ़ सकते हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि इसका खास फायदा किसानों को नहीं मिलेगा क्योंकि ज्यादातर किसान अपना 70-80 फीसदी कपास पहले ही बेच चुके हैं।
इसका फायदा मूलतः कपास के स्टॉकिस्टों या उन बड़े किसानों को मिलेगा जिन्होंने अपनी फसल अभी तक बचाकर रखी हुई है। वैसे, कृषि मंत्री शरद पवार से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल तक आम किसानों के हित के नाम पर कपास का निर्यात खोलने के लिए जोर लगाए हुए थे। कपास निर्यात को लेकर 5 मार्च से ही उहापोह मची हुई थी, जब विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इस पर बैन लगा दिया था।
बता दें कि भारत दुनिया में चीन के बाद कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जबकि अमेरिका इसका सबसे बड़ा निर्यातक है। कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत काम करनेवाले कॉटन एडवाइजरी बोर्ड का अनुमान है कि 2012-13 के मौजूदा सीजन (अगस्त से जुलाई) में देश में कपास का उत्पादन लगभग 347 लाख गांठ (एक गांठ = 170 किलोग्राम) रहेगा, जबकि घरेलू खपत 250 लाख गांठों की रहेगी। वहीं अमेरिका के कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कपास का उत्पादन 2012-13 में घटकर 323 लाख गांठ रहेगा, जबकि खपत 260 लाठ गांठों की रहेगी। मालूम हो कि बीते सीजन 2011-12 में देश में कपास का उत्पादन 342.5 लाख गांठ और खपत 253 लाख गांठ रही है। सरकार ने फिलहाल भारतीय कपास निगम (सीसीआई) से कहा कि वह जून, जुलाई व अगस्त में किसी आकस्मिक स्थिति का सामना करने के लिए 10 लाख गांठों का बफर स्टॉक बनाकर रखे।
केंद्र सरकार ने सोमवार को लिए गए ताजा फैसले के साथ यह भी तय किया है कि हर दो-तीन हफ्ते पर देश में कपास की उपलब्धता की समीक्षा की जाएगी और जरूरत पड़ी तो इसके निर्यात पर फिर से रोक लगाई जा सकती है। बता दें कि कपास की उपलब्धता घटने या दाम बढ़ने का प्रतिकूल असर देश के टेक्सटाइल उद्योग पर पड़ सकता है। टेक्सटाइल क्षेत्र ने इस समय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से करीब 10.5 करोड़ लोगों को रोजगार दे रखा है, जबकि हैंडलूम के धंधे में भी भारी तादाद में लोगों को रोजगार मिला हुआ है।