अमेरिकी सरकार के बांडों में सबसे ज्यादा निवेश रखनेवाले चीन ने वहां अपना निवेश घटाना शुरू कर दिया है, जबकि भारत बढ़ाता जा रहा है। हालांकि मात्रा के लिहाज से भारत का निवेश चीन के सामने कहीं नहीं टिकता। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2010 से जनवरी 2011 के बीच चीन ने अमेरिकी बांडों में अपना निवेश 20.6 अरब डॉलर घटा दिया है। अक्टूबर में यह 1175.3 अरब डॉलर था, जबकि जनवरी में 1154.7 अरब डॉलर रहा है।
जनवरी 2011 में अमेरिकी सरकार के बांडों में भारत का निवेश 40.6 अरब डॉलर है जो चीन के निवेश के आगे कुछ नहीं है। लेकिन यह अक्टूबर 2010 के 40.1 अरब डॉलर से 50 करोड़ डॉलर अधिक है। चीन का निवेश दिसंबर से जनवरी के बीच 5.4 अरब डॉलर कम हुआ है। इस पर बीजिंग में इंडस्ट्रियल बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री लु झेंगवेई ने कहा कि यूं तो 5.4 अरब डॉलर के बांड की बिक्री आंकड़ों के हिसाब से बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन चीन के विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि साम्यवादी देश ने अपने विदेशी मुद्रा निवेश पोर्टफोलियो में अमेरिकी बांडों का हिस्सा काफी घटा दिया है।
हालांकि अब भी चीन के पास 1154.7 अरब डॉलर के अमेरिकी बांड हैं जो उसके कुल 2850 अरब डॉलर के विदेश मुद्रा भंडार का 40 फीसदी है जो वाकई काफी बड़ा आंकड़ा है। लु ने समाचार पत्र चाइना डेली से कहा, ‘‘चीन की योजना अमेरिकी संपत्तियों में निवेश घटाकर जोखिम को कम करना और विदेशी मुद्रा भंडार को विविधीकृत करना है। इसी योजना के तहत बांड बेचा जा रहा है।’’
चीन ने इधर जापानी सरकार के बांडों में निवेश भी घटाया है। उसने 2010 में जापान सरकार के 37.4 अरब येन (46 करोड़ डॉलर) के बांड और 430.4 अरब येन के मुद्रा बाजार प्रपत्र बेचे हैं।