जमकर टैक्स और टैक्स से भिन्न राजस्व पाने के बावजूद केंद्र सरकार इस बार वित्तीय अनुशासन की लक्ष्मण रेखा से बाहर निकल जाएगी। चालू वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में अनुमान लगाया था कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9% तक सीमित रखा जाएगा। अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आंकड़ों की कोई हेराफेरी नहीं की तो यह घाटा जीडीपी के 6% के पार जा सकता है। यह 5.9% की बजट प्रतिबद्धता को तभी मान सकता है, जब सरकार अपने खर्चों में कम से कम 37,000 करोड़ रुपए की कटौती कर दे। यह बात देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट में कही गई है। बता दें कि राजकोषीय घाटा सरकार के निर्धारित कुल व्यय का वह हिस्सा है जिसे वह उधार लेकर पूरा करती है। इस उधार में बाज़ार से लिए गए ऋण से लेकर अल्प बचत योजनाओं, राज्य प्रोविडेंट फंड, पब्लिक खाते के ऋण और विदेशी ऋण तक शामिल होते हैं। बजट में राजकोषीय घाटे की रकम 17,86,816 करोड़ रुपए रखी गई थी। हालांकि सरकार की कुल उधारी की रकम 17,98,603 करोड़ रुपए थी। मगर सरकार ने 11,787 करोड़ रुपए का कैश बैलेंस दिखाकर राजकोषीय घाटा कम कर लिया। अगर सरकार राजकोषीय घाटे की सीमा नहीं तोड़ती, तब भी अनुशासन टूट जाएगा। कारण ऊपर-ऊपर जिस जीडीपी को 10.5% बढ़ना था, वह 8.9% ही बढ़ सकता है। अब बुधवार की बुद्धि…
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