कंपनी अगर अच्छा लाभ मार्जिन कमाए और बराबर अपना प्रति शेयर लाभ बढ़ाने के जतन में लगी रहे तो उसका शेयर थोड़े बहुत दबाव में आने के बावजूद लंबे समय में बढ़ता है। हमें निवेश के लिए कंपनियां चुनते वक्त खास ध्यान रखना चाहिए कि धंधे पर उनकी पकड़ कितनी है, उसका दायरा कितना बड़ा है और अपने माल पर वो कितना ज्यादा प्रीमियम खींच सकती है। आज तथास्तु में ऐसी ही स्थिति में खड़ी एक कंपनी…औरऔर भी

कहा जाता है कि अच्छी कंपनी में निवेश करो और दस-बीस साल के लिए भूल जाओ। लेकिन हर पल बदलती दुनिया में इतना ज्यादा धैर्य भी अच्छा नहीं होता। निवेश की खेती में पूरी सावधानी के बावजूद फालतू घास के घुसने का खतरा बना ही रहता है। इसलिए अपने पोर्टफोलियो में बराबर काट-छांट करते रहना चाहिए। साल भर के बाद कमज़ोर या खराब प्रदर्शन करने वालों को बाहर निकाल देना चाहिए। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

कंपनियों का धंधा उतनी तेज़ी से नहीं बदलता जितनी तेज़ी से शेयर बाज़ार ऊपर या नीचे होता है। कंपनी का धंधा मजबूत होने के बावजूद उसका शेयर गिर सकता है क्योंकि बाज़ार का मूल्यांकन या पी/ई अनुपात तमाम वजहों से नीचे आ जाता है। यही मूल्यांकन हमें किसी अच्छी कंपनी में घुसने और निकलने का मौका देता है। पी/ई ज्यादा तो बेचकर निकल लिए और पी/ई कम तो निवेश कर लिया। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। लेकिन अच्छी कंपनियों को निखरने में चार-पांच साल लग जाते हैं। मगर, बाज़ार की नज़र में चढ़ते ही तमाम लोग उन्हें पकड़ने लगते हैं और उनके शेयर उठने लगते हैं। स्मॉल-कैप कंपनियों के साथ यही होता है। अंतर्निहित ताकत उन्हें बड़ा बनाती जाती है। धीरे-धीरे एक दिन वे साधारण निवेशक की पहुंच से दूर चली जाती हैं। तथास्तु में आज एक कंपनी जो फिलहाल निखरने के मुहाने पर है।औरऔर भी

हीरे की परख के लिए अच्छा जौहरी चाहिए। लेकिन शेयर बाज़ार में लिस्टेड अच्छी कंपनी की पहचान हर कोई कर सकता है, बशर्ते वो दो खास तथ्यों का पता लगाना सीख जाए। पहला यह कि कंपनी का कैश-फ्लो कितना अच्छा है। कैश-फ्लो शुद्ध लाभ से वर्किंग कैपिटल और नए पूंजी निवेश को घटाने के बाद निकलता है। दूसरा यह कि कंपनी अपनी पूंजी की लागत से कितना ज्यादा कमा रही है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

अगर अपने यहां बाज़ार व समाज में आज भी ठगी का बोलबोला है तो इसका मतलब यही है कि बाज़ार का समुचित विकास नहीं हुआ। इसमें ‘चलता है’ का हमारा अंदाज़ बड़ा बाधक है। खाने-पीने का सामान या दवा खरीदते वक्त हम एक्पायरी तिथि तक नहीं देखते। लेकिन विकसित देश बनने की प्रक्रिया में यह जागरूकता बढ़ रही है और उसी के साथ बढ़ रही हैं कुछ कंपनियां। तथास्तु में आज इसी ज़रूरत से उपजी एक कंपनी…औरऔर भी

हमारे बैंकिंग क्षेत्र पर डूबत ऋणों का साया लहरा रहा है। रिजर्व बैंक ने इनके प्रावधान का जो नियम बनाया है, उससे अगले एक साल में बहुत सारे बैंकों का मुनाफा सफाचट हो जाएगा। सबसे बुरा असर सरकारी बैंकों पर पड़ेगा। इनमें से बहुतों का मुनाफा इसी साल 30-70% घट सकता है। निजी क्षेत्र के बैंक भी अनर्जक ऋणों के लपेटे में हैं। लेकिन इनमें से एक बैंक मजबूती से डटा है। आज तथास्तु में वही बैंक…औरऔर भी

बाज़ार अगर जाति-धर्म या पद-पदवी का भेद करे तो चल ही नहीं सकता। इसी के पूरक के बतौर लोकतांत्रिक व्यवस्था निकली है। बाज़ार का ही कमाल है कि आज कोई भी शख्स तमाम बड़ी कंपनियों के मालिकाने का हिस्सा खरीद सकता है। लेकिन यही प्रोत्साहन खेती में गायब है। अगर आप किसान नहीं हैं तो महाराष्ट्र या गुजरात जैसे देश के कई राज्यों में खेती के लिए ज़मीन नहीं खरीद सकते। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

मुंबई में शनिवार से शुरू हुआ मेक इन इंडिया सप्ताह गुरुवार तक चलेगा। एक तरफ हमारी बड़ी कंपनियां मौका देखकर बाहर भागी जा रही हैं, वहीं विदेशियों को भारत में निवेश करने, बनाने व दुनिया को निर्यात करने का न्यौता दिया जा रहा है। लेकिन क्या मोदी सरकार के इस ‘भारत निर्माण’ में हम आम भारतीयों व कंपनियों का कोई योगदान नहीं है? इस पर सोचना ज़रूरी है। अब तथास्तु में आज की एक खांटी देशी कंपनी…औरऔर भी

पैसे से पैसा वही बनाते हैं जो दूसरों के इस लालच का फायदा उठाते हैं। वरना, पैसे से पैसा कभी नहीं बनता। शेयर बाज़ार में निवेश उन्हीं के लिए हैं जो इतना कमाते हैं कि ज़रूरी बचत के बाद भी इतना धन बच जाता है जिसकी उन्हें तत्काल ज़रूरत नहीं होती। वो धन वे मजबूत कंपनियों में लगाते हैं जिनका धंधा बढ़ने पर उनका निवेश फलता-फूलता है। यही मूल सिद्धांत है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी