कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों में सकल पूंजी निर्माण 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13.1 फीसदी था, जबकि वित्त वर्ष 2010-11 तक यह बढ़कर 20.1 फीसदी हो गया है। कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र मार्च 2012 में खत्म हो रही 11वीं योजना के दौरान 3.5 फीसदी की अनुमानित दर से बढ़ा है, जबकि 10वीं और 9वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विकास की दर क्रमशः 2.4 फीसदी और 2.5 फीसदी थी। यह आंकड़े हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बुधवार को वर्षा आधारित खेती पर आयोजित एक कार्यशाला में पेश किए।
एक दिन की इस कार्यशाला का आयोजन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की तरफ से किया गया था। राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति के अलावा 20 राज्यपालों, आठ केंद्रीय मंत्रियों, पांच मुख्यमंत्रियों और कृषि विश्वविद्यालयों के 37 कुलपतियों ने भाग लिया। डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं समझता हूं कि हमारी सरकार ने पिछले लगभग साढ़े सात वर्षों में कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया है। हम कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों में बैंकों के लगभग 4.75 लाख करोड़ रुपये लगा सके हैं।
उनका कहना था कि सरकार ने कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया है और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शुरू किए जाने से राज्यों को कृषि के क्षेत्र में उनकी भागीदारी और निवेश बढ़ाने का प्रोत्साहन मिला है। नतीजतन, कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए आवंटन राज्य योजना परिव्यय के अनुपात के रूप में 2006-07 के 4.88 फीसदी की तुलना में 2010-11 में बढ़कर 6.04 फीसदी हो गया है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर खुशी जताई कि इस साल देश में खाद्यान्न उत्पादन 25 करोड़ टन की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच सकता है। कृषि उत्पादन लक्ष्य से 50 लाख टन अधिक रहेगा। ताजा अनुमानों के अनुसार, कपास उत्पादन भी 3.4 करोड़ गांठ रहेगा, जो एक नया रिकॉर्ड है। लेकिन उनका कहना था कि देश में खाद्यान्न उत्पादन की सालाना वृद्धि दर मात्र एक फीसदी है, जबकि 2020-21 तक देश की अनुमानित आवश्यकता पूरा करने के लिए यह दर दो फीसदी होनी चाहिए।
उन्होंने कृषि उत्पादों की कीमतों में भारी उतार चढ़ाव पर चिंता जताते हुए कहा कि खेतों से रिटेल उपभोक्ताओं तक कृषि उत्पादों के दामों में भारी अंतर हो जाता है। कटाई के बाद दाम कम होते हैं। हमें इन सभी समस्याओं को कृषि विपणन व्यवस्था को सुधारकर दूर करना होगा और साथ ही आपूर्ति श्रृंखला में निवेश करना होगा।