हाथ से सरकती ब्रिटानिया की बाज़ी

मछली को पकड़ने चलो और वो हाथ से सरक कर भाग जाए। कुछ ऐसा ही हाल ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज का है। इसका शेयर 10 मई 2011 को 324 रुपए का न्यूनतम स्तर पकड़ने के बाद परसों 13 जून तक 37.56 फीसदी बढ़कर 445.70 रुपए चुका था। जैसे ही इसे पकड़ने का ख्याल दिमाग में आया कि कल यह फिर 5.42 फीसदी उछलकर 469.85 रुपए पर जा पहुंचा। इस तरह 10 मई से 13 जून के बीच यह शेयर 45 फीसदी बढ़त ले चुका है।

वैसे कल की बढ़त में डे-ट्रेडरों का बड़ा हाथ है। उनकी सक्रियता के चलते बीएसई (कोड – 500825) में इसका वोल्यूम एकबारगी उछलकर 2.29 लाख शेयरों तक जा पहुंचा, लेकिन इसमें से केवल 13.38 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह एनएसई (BRITANNIA) में ट्रेड हुए 3.79 लाख शेयरों में मात्र 22.90 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। इस महीने डिलीवरी का यह अब तक का न्यूनतम अनुपात है। सवाल उठता है कि क्या ब्रेड, बिस्किट से लेकर डेयरी उत्पाद बनानेवाली इस नामी कपनी में इतनी बढ़त के बाद भी निवेश करना सही होगा? आइए, देखते हैं।

पहले यह देखा जाए कि बी ग्रुप का यह स्टॉक इतना बढ़ा क्यों? खास वजह है कंपनी के अच्छे सालाना नतीजे। वित्त वर्ष 2010-11 में आटा, चीनी, खाद्य तेल और दूध जैसे कच्चे माल की कीमत बढ़ने के बावजूद कंपनी का स्टैंड-अलोन शुद्ध लाभ 24.7 फीसदी बढ़कर 116.51 करोड़ से 145.29 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। इसी दौरान उसका कंसोलिडेटेड शुद्ध लाभ 103.10 करोड़ से 301.6 फीसदी बढ़कर 134.20 करोड़ हो गया। वैसे, यह अनोखी कंपनी है जिसका कंसोलिडेटेड मुनाफा स्टैंड-अलोन से कम है!!

नोट करने की बात यह भी रही कि मार्च 2011 की तिमाही में कंपनी अपना परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 8.62 फीसदी पर ले गई, जबकि दिसंबर 2010 की तिमाही में यह 6.55 फीसदी था। पूरे वित्त वर्ष 2010-11 का ओपीएम 6.65 फीसदी है, जबकि 2009-10 में यह 4.78 फीसदी ही था। असल में 2009-10 कंपनी के लिए काफी झटके वाला वर्ष था। साल भर बाद ही कंपनी के पटरी पर लौट आने के निवेशकों को सुखद आश्चर्य हुआ और वे इस शेयर में खरीद बढ़ाने लगे।

उनके इस रुख को इस बात से भी प्रोत्साहन मिला कि कंपनी ने वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 2 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 6.50 रुपए का लाभांश घोषित किया है जो प्रतिशत में 325 फीसदी निकलता है। सितंबर 2010 से पहले तक उसका शेयर 10 रुपए अंकित मूल्य का था। 2009-10 के लिए उसने 10 रुपए पर 25 रुपए यानी 250 फीसदी का लाभांश घोषित किया था।

अब अगर लाभप्रदता आधारित मूल्यांकन की बात करें तो चूंकि कंपनी का सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 12.16 रुपए है, इसलिए 469.85 रुपए के मौजूदा भाव पर उसके शेयर का पी/ई अनुपात 38.6 निकलता है। ब्रिटानिया को बहुत तेजी से टक्कर देने की दिशा में बढ़ रही आईटीसी का स्टॉक इस समय 34.3 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, वहीं नेस्ले 45.9, ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर 33.1 और जुबिलेंट फूडवर्क्स का शेयर 72.9 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।

वैसे, बिस्किट बाजार में ब्रिटानिया की मुख्य होड़ आईटीसी के अलावा कैडबरी और पारले से है जो शेयर बाजार में नहीं हैं। डेयरी उत्पादों में उसे खास टक्कर नेस्ले के अलावा अमूल जैसे पुराने व गोवर्धन जैसे नए ब्रांडों से मिल रही है। फिर भी देश के बिस्किट बाजार में करीब 35 फीसदी हिस्सेदारी के साथ ब्रिटानिया बाजार का रुख बनाने-बिगाड़ने की स्थिति में है। उसके गुड डे, टाइगर, ट्रीट, 50-50 व न्यूट्रीच्वॉयस जैसे ब्रांड मध्यवर्ग में पैठ जमा चुके हैं। प्रतिस्पर्धा आगे कड़ी होने जा रही है। लेकिन आम धारणा है कि कंपनी की प्रबंध निदेशक विनीता बाली इस टक्कर में जीतने का दमखम रखती हैं।

एक और सकारात्मक बात कंपनी में निवेश के पक्ष में कही जा रही है कि उसका बाजार पूंजीकरण इस समय 5612 करोड़ रुपए है जो उसकी 4605 करोड़ रुपए की समेकित बिक्री का 1.22 गुना निकलता है, जबकि आमतौर पर एफएमसीजी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण उनकी बिक्री के तीन गुने से ज्यादा रहता है। जैसे, हिंदुस्तान यूनिलीवर के मामले में यह अनुपात 3.45 और आईटीसी के मामले में 6.98 है। लेकिन इन दोनों कंपनियों की बिक्री के आगे ब्रिटानिया कहीं नहीं टिकती। खैर, इस साल अच्छे मानसून के बाद ब्रिटानिया के लिए कच्चे माल की लागत कम होने का अनुमान है, वहीं कच्चे तेल के दाम ज्यादा होने से उसकी पैकेजिंग लागत बढ़ सकती है। फिर भी कुल मिलाकर कंपनी के लाभ मार्जिन में सुधार के आसार हैं।

ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के चेयरमैन नुस्ली वाडिया हैं। उनके बेटे जेह वाडिया और नेस वाडिया कंपनी के निदेशक हैं। कंपनी के 13 सदस्यीय निदेशक बोर्ड में केकी दादीसेठ, निमेश कम्पानी और विजय केलकर जैसी हस्तियां विराजमान हैं। कंपनी की इक्विटी में 50.96 फीसदी हिस्सेदारी प्रवर्तकों की हैं और बाकी 49.04 फीसदी शेयर पब्लिक के खाते में हैं। इसमें से भी एफआईआई के पास 10.33 फीसदी और डीआईआई के पास 16.65 फीसदी शेयर हैं। इसके बाद अन्य के पास बचते हैं 22.06 फीसदी शेयर।

दिलचस्प बात यह है कि नुस्ली वाडिया की कंपनी होने के बावजूद इसके प्रवर्तक विदेशी बताए गए हैं। इसकी वजह यह है कि नुस्ली वाडिया के पास सीधे-सीधे कंपनी के मात्र 2250 ही शेयर हैं। प्रवर्तकों के हिस्से के बाकी 6,08,66,095 शेयर सिंगापुर की छह कंपनियों के नाम में हैं, जिसमें से सबसे ज्यादा 5,39,04,500 यानी कंपनी की कुल इक्विटी का 45.13 फीसदी हिस्सा एसोसिएटेड बिस्किट्स इंटरनेशनल के पास है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 40,933 है। इसमें से चार बड़े शेयरधारकों में एलआईसी (5.34 फीसदी), जीआईसी (1.13 फीसदी), एचडीएफसी ट्रस्टी कंपनी (2.91 फीसदी) और सिंगापुर की फर्म एराइजैग पार्टनर्स (7.44 फीसदी) शामिल है।

इस तरह ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज की कुंडली हमने अपनी तरफ से आपके सामने खोलकर रख दी। अब इस पर विचार करना आपका काम हैं। क्या कहा – आप पंडित नहीं हैं तो कुंडली विचारेंगे कैसे? तो गुरु जी! निवेश की कला में सिद्धहस्त होने के लिए पंडित तो बनना ही पड़ेगा। नहीं तो निवेश की ललक छोड़कर घर बैठिए। क्या जरूरत है अनपढ़-गंवार की तरह अपनी बचत किसी और के हवाले करने की?

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