उद्यमी रिस्क ही रिस्क लेता है। स्टार्ट-अप वाले भी जुगाड़ टाइप रिस्क ही लेते हैं। आईआईएम या आईएमएम वाले सुरक्षित रिस्क लेते हैं। समझने की बात है कि ट्रेडर न तो उद्यमी है, न ही स्टार्ट-अप या फाइनेंस का मास्टर। उसका ट्रेड ऐसा है जिसमें बाज़ी बड़े बारीक अंतर से इधर से उधर चली जाती है। इसलिए उसे हिसाब लगाना पड़ता है कि इतना हारे, उतना जीते तो फायदे के लिए सौदे में रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात कितना होना चाहिए।
असल में अलग-अलग ट्रेडरों का रिस्क प्रोफाइल अलग होता है तो उनकी ट्रेडिंग रणनीति भी अलग होती है। जो लोग कम रिस्क लेना चाहते हैं उन्हें तिमाही नतीजों की घोषणा के आसपास कंपनी के शेयर को हाथ नहीं लगाना चाहिए। नतीजों के 15-20 दिन बाद जब मारकाट मिट जाए, मामला शांत हो जाए, तभी उसकी तरफ झांकना चाहिए। वैसे, कुछ भी कर लो ट्रेडिंग से रिस्क खत्म नहीं हो सकता। इसलिए हिसाब से चलें।
यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि हर खेल हर खिलाड़ी के लिए नहीं होता। वहीं, हर बॉल पीटने के चक्कर में बल्लेबाज़ खुद पिट जाता है। लंबी पारी खेलने में माहिर धुरंधर बहुत सारी गेंदों को जाने देते हैं। वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग में भी अगर आपको लंबी पारी खेलनी है, बराबर कमाना है तो बहुत सारे अवसरों पर आपको ट्रेडिंग से दूर रहना चाहिए। जैसे, हर महीने के आखिरी गुरुवार को डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी के दिन बाज़ार से दूर ही रहने में भलाई है।
इस बीच ज़माना और ख्वाहिशें तेज़ी से बदल रही हैं। बहुत से लोगों को अब नौकरी बहुत ही कम जमती है। स्टार्ट-अप बन चुके हैं और बढ़ते ही जा रहे हैं। उद्यमियों की भी भरमार है। सभी आर्थिक आज़ादी चाहते हैं। वित्तीय बाज़ार में भी लोगबाग यही आज़ादी हासिल करने के लिए आते हैं। सभी रिस्क लेते हैं। लेकिन स्टार्ट-अप, उद्यमी, निवेशक या ट्रेडर के रिस्क लेने का स्तर भिन्न होता है। उद्यमी जमकर रिस्क लेता है, जबकि ट्रेडर बहुत हिसाब से, नफा-नुकसान की गणना कर रिस्क लेता है।
आईआईटी या आईआईएम से निकलने वाले बहुत से विद्यार्थी भी धनार्थी बनने के चक्कर में स्टार्ट-अप की तरफ भाग रहे हैं। लेकिन सही मायनों में वे उद्यमी नहीं है क्योंकि उद्यमी वो शख्स होता है जो सुरक्षा की परवाह किए बगैर नए धंधे में उतर जाता है। जो बच्चे आईआईटी या आईआईएम में जाते हैं वे तो परम सुरक्षा की खातिर ये डिग्रियां पाने जाते हैं। महज धन के पीछे भागनेवाला उद्यमी नहीं होता।