फर्जी बैनामा करना अथवा कराना अब आसान नहीं होगा। आपकी जमीन पूरी तरह महफूज रहेगी। इस तरह की धोखाधड़ी को रोकने के लिए केंद्र सरकार एक ऐसा कानून बना रही है, जिसमें जमीन के असल मालिक की गारंटी सरकार को लेनी होगी। इसमें आपकी जमीन के मालिकाना हक का बीमा भी होगा। आपके शहरी भूखंड अथवा गांव के खेत को सुरक्षित रखने का दायित्व सरकार के साथ बीमा कंपनी निभाएगी। किसी भी तरह की गड़बड़ी की भरपाई सरकार व बीमा कंपनी को करनी होगी। साथ ही बटाई पर दी जाने वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर उठने वाले विवाद भी घटेंगे। इससे भू-राजस्व के मुकदमों में कमी आने की भी संभावना है। परंपरागत अदालतों की जगह विवादों का निपटारा ट्राइब्यूनल निश्चित अवधि में करेंगे।
केंद्रीय भू संसाधन विभाग की सचिव रीता सिन्हा ने विधेयक के मसौदे पर विस्तृत बातचीत में बताया कि विभिन्न राज्यों में भूमि प्रबंधन व राजस्व की भाषा व कानून फिलहाल अलग-अलग है। ज्यादातर राज्यों में भूमि सुधार नहीं हो पाए हैं। जमीन के बंटवारे में ढेर सारी खामियां है, जिसे प्रस्तावित विधेयक के मार्फत ठीक करने का प्रयास किया जाएगा। इससे देश भर के भूमि बंदोबस्त कानून में एकरूपता आ जाएगी। राज्यों से इस अहम मसले पर गहन विचार-विमर्श किया जा रहा है।
‘लैंड टाइटलिंग बिल-2010’ का मसौदा आम लोगों की प्रतिक्रिया के लिए जारी कर दिया गया है। इसे देश की 17 भाषाओं में जारी किया गया है। इसे अमली जामा पहनाने से पहले जमीन के दस्तावेजों के रखरखाव व उनमें संशोधन आदि की प्राथमिक जिम्मेदारी निभाने वाले दो लाख पटवारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। पूरी प्रणाली को पारदर्शी बनाने के लिए आंकड़े ‘ऑनलाइन’ किए जाएंगे। बैनामा करने वाले राजस्व, सर्वेक्षण और पंजीकरण विभाग फिलहाल अलग-अलग हैं, जिन्हें एक संयुक्त प्रणाली के तहत लाने के लिए लैंड टाइटलिंग अथॉरिटी का गठन किया जाएगा। सभी राज्यों से मसौदे में जरूरी संशोधन के लिए सुझाव मांगे गये हैं।
फिलहाल नक्शा और रजिस्ट्री आफिस के दस्तावेज में रकबा अलग-अलग दिखने से निचली अदालतों में विवादों की संख्या बढ़ी है। नए प्रावधान में नक्शों का डिजिटल स्वरूप बनाकर उन्हें सीधे दस्तावेजों से जोड़ दिया जाएगा। कुछ राज्यों में 12 साल तक बटाई पर दी गई जमीन का मालिकाना हक बदल जाता है, जो नई व्यवस्था से खत्म हो जाएगा। इससे भूमि के मालिक अपनी जमीन को बेखटका कांट्रैक्ट खेती के लिए लंबे समय के लिए दे सकते हैं।
यह कानून सबसे पहले देश के केंद्रशासित क्षेत्रों में लागू होगा। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों ने इसमें खास रुचि दिखाई है, जहां भूमि सुधार लगभग पूरा हो चुका है। लेकिन उन राज्यों में इसे लागू करने में काफी दिक्कतें पेश आएंगी, जहां न भूमि सुधार नहीं हुआ है और न ही भूमि के बंदोबस्ती दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण किया जा सका है।