ब्लैक-शोल्स तब, बायनोमिअल अभी

ऑप्शन प्राइसिंग के ब्लैक-शोल्स मॉडल की तह में जाने से पहले हम एक दूसरे प्राइसिंग मॉडल को जानने की कोशिश करते हैं जो बाद में ब्लैक-शोल्स मॉडल को ठीक से जानने में काम आ सकता है। यह है बायनोमिअल मॉडल। हम इसे यूरोपियन कॉल ऑप्शन पर लागू करके उसका भाव निकालेंगे। बाद में पुट ऑप्शन का भाव कॉल-पुट समता के आधार पर निकाल सकते हैं। याद रखें कि यूरोपियन ऑप्शन सौदे एक्सपायरी के वक्त ही काटे जा सकते हैं, बीच में नहीं।

हम इस मॉडल का इस्तेमाल करते हुए एक लभांश न देनेवाली कंपनी या स्टॉक के कॉल ऑप्शन का भाव निकालेंगे। यह यूरोपियन कॉल ऑप्शन होगा। साथ ही गणना में हम रिस्क-फ्री बांड का उपयोग करेंगे। इस गणना में हम कुछ चीजें मानकर चलते हैं। पहली और सबसे अहम मान्यता कि हर अवधि में स्टॉक एक निश्चित प्रतिशत ही ऊपर या नीचे जाता है। मसलन, कोई स्टॉक अगर आज 100 रुपए पर ट्रेड हो रहा है तो वह कल या तो 10 प्रतिशत ऊपर जा सकता है या 10 प्रतिशत नीचे, 5 प्रतिशत ऊपर जा सकता है तो 5 प्रतिशत ही नीचे जा सकता है।

दूसरी चीज़ मानकर चलेंगे कि हम रिस्क-फ्री ब्याज दर पर खुलकर ऋण ले या दे सकते हैं। तीसरी बात मानकर चलेंगे कि इस सौदे की कोई लागत नहीं है और इस पर कोई टैक्स नहीं लगता। चौथी बात – इसमें शॉर्ट सेलिंग की इजाजत है। अब हम एक उदाहरण के जरिए इस मॉडल को समझने की कोशिश करेंगे। हम समय की तीन अवधि लेते हैं: t = 0, 1, 2 जिसमें 0 का मतलब अभी, 1 का मतलब, 1 महीने, 2 का मतलब 2 महीने। रिस्क-फ्री ब्याज दर = 10%। स्टॉक का मूल्य अभी यानी t = 0 पर 100 रुपए है और यह हर महीने 20% ऊपर या नीचे जाता है। t = 1 पर इसका मूल्य 120 या 80 रुपए है। वहीं t = 2 पर इसका मूल्य 144 रुपए, 96 या 64 रुपए होगा, t = 1 के भाव की अपेक्षा 20% ऊपर या नीचे जाने के गणित से।

अब हमें 100 रुपए स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन का भाव निकालना है जिसकी एक्सपायरी t = 2 यानी दो महीने बाद होनी है। हम अगर बैकवर्ड इंडक्शन का तरीका अपनाते हुए दो महीने बाद कॉल ऑप्शन का अंतर्निहित मूल्य निकालें तो स्टॉक का मूल्य अगर एक्सपायरी पर 144 रुपए हुआ तो यह max (St – K, 0) = max (144 – 100, 0) फॉर्मूले के अनुसार यह 44 रुपए होगा, जबकि 94 या 64 रुपए रहने पर शून्य (0)। इसमें St का मतलब एक्सपायरी मूल्य और K का मतलब ऑप्शन का स्ट्राइक मूल्य है। अगर हम एक महीने की एक्सपायरी पर गणना करें तो ऑप्शन का मूल्य 20 रुपए अथवा शून्य निकलता है।

अब हम स्टॉक और बांड का तुलनात्मक मूल्यांकन करेंगे ताकि समतुल्य पोर्टफोलियों की स्थिति में ऑप्शन का पे-ऑफ निकाला जा सके। पहले डेल्टा की गणना करते हैं। डेल्टा का मतलब होता है कि एक कॉल ऑप्शन को हेज़ करने के लिए हमें कितने स्टॉक रखने पड़ेंगे। यह ऑप्शन के मूल्य में ऊपर-नीचे के अंतर को स्टॉक के मूल्य में ऊपर-नीचे के अंतर से भाग देकर निकाला जा सकता है। उक्त उदाहरण में यह (44 – 0) / (144 – 96) = 44/48 = 0.9167 निकलता है। मतलब हमें एक कॉल ऑप्शन को हेज़ करने के लिए 0.9167 स्टॉक रखने प़ड़ेंगे।

बांड से मिलान करें तो हमारी स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि स्टॉक का मूल्य और बांड का मूल्य स्टॉक के बढ़ने या घटने पर ऑप्शन पे-ऑफ के बराबर हो। मतलब यह कि…

ज्यादा होने पर 44 = 0.9167 x 144 + 1.1 Bu

कम होने पर 0 = 0.9167 x 96 + 1.1 Bu

इसलिए, Bu = -80

इस तरह हमें 0.9167 स्टॉक खरीदने के लिए 80 रुपए उधार लेने पड़ेंगे। इस मॉडल में हम स्टॉक और बांड के पोर्टफोलियो का मिलान करते हैं। एक महीने की एक्सपायरी पर स्टॉक का मूल्य 120 रुपए होता है तो ऑप्शन का भाव निकालें तो वह = (0.9167 x 120) + Bu = 110 – 80 = 30 रुपए निकलता है। इस तरह स्टॉक के मूल्य के ऊपर बढ़ने पर ऑप्शन का भाव 30 रुपए बनता है। वहीं, अगर स्टॉक नीचे गिरता है, तब गणना करने पर ऑप्शन का भाव शून्य निकलता है।

ऑप्शन के भाव की यह गणना हमने एक महीने बाद की स्थिति में t = 1 होने पर की। अगर इसी तरह की गणना हम अभी आज की स्थिति में t = 0 पर करें तो ऑप्शन का भाव 20.45 रुपए निकलता है। यानी, इस समय 100 रुपए स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन का भाव 20.45 रुपए निकलता है। यह सारी गणना फिलहाल थोड़ी उलझी हुई लगती है। लेकिन इस पर अमल करना शुरू कर देंगे तो यह आसान लगने लगेगी। इसी मॉडल में ऑप्शन भाव निकालने का बैकवर्ड इंडक्शन के अलावा दूसरा तरीका होता है – रिस्क न्यूट्रल वैल्यूएशन। इसके बारे में कल जानेंगे।

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