अदि फाइनकेम: आदि-अंत देखकर!

हर शेयर अपने आप में एक कहानी कहता है। उसका भाव बीते कल का ही नहीं, आनेवाले कल का भी संकेत देता है। लेकिन एक बात तमाम कोशिशों के बावजूद परदे में रह जाती है। और, वो है कि कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेंस की स्थिति। मतलब यह कि प्रबंधन कैसा चल रहा है? प्रवर्तकों का रवैया क्या है? वे कंपनी को लोकतांत्रिक तरीके से चला रहे हैं या इतने सारे शेयरधारकों के साथ लिस्टेड होने के बावजूद उसे अपनी बपौती मानते हैं? ऐसे तमाम सच कंपनी के सही-तरीके से चलने और निवेश के कायदे से फलने-फूलने के लिए जरूरी हैं। लेकिन ऐन वक्त तक इनका पता नहीं चलता। असलियत खुलने पर कैसा बेड़ा गरक होता है, इसका नमूना पौने चार साल पहले सत्यम कंप्यूटर्स पेश कर चुकी है।

दिक्कत यह है कि किसी भी कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेंस की स्थिति का पता लगाना विश्लेषकों के भी बड़ा कठिन है। इसे तो कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय या सेबी जैसी नियामक संस्थाएं ही कर सकती हैं। कंपनियां अपनी तरफ से खानापूर्ति कर देती हैं। लेकिन उससे असली बात पता नहीं लगती। हमने दो हफ्ते पहले जियोडेसिक में निवेश की सलाह दी थी। कंपनी अच्छी है। धंधा संभावनामय है। देखा कि कंपनी के फंडामेंटल काफी मजबूत हैं। शेयर आठ साल पहले जितने भाव पर हैं। कुछ अच्छी रिसर्च रिपोर्टें देखीं तो निवेश की सलाह दे डाली। बाद में पता चला कि इसके साथ तो कॉरपोरेट गवर्नेंस का कुछ लोचा है। तब समझ में आया कि कभी 284 रुपए पर रहा शेयर अभी 40 रुपए के आसपास क्यों है।

मालूम हुआ कि यह सस्ता है तो सिर्फ इसलिए कि कंपनी के अंदरूनी संचालन में कोई विकट समस्या है। ऐसा ही हाल सुबेक्स, ऑनमोबाइल ग्लोबल, ट्यूलिप टेलिकॉम, बलरामपुर चीनी और बजाज हिंदुस्तान जैसी कंपनियों का भी है। जियोडिसिक का शेयर पिछले दो हफ्तों में 43 रुपए से घटकर 39.65 रुपए पर आ चुका है। कुछ विश्लेषक साल भर में इसके 225 रुपए तक जाने की बात कह रहे थे। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे-आप जैसे कम जोखिम-पसंद निवेशकों को अब इससे निकल जाना चाहिए। ज्यादा गंवाने से अच्छा है शुरू में ही थोड़ा घाटा खा लेना। बाद में तस्वीर पूरी साफ हो जाए, जियोडेसिक बढ़कर 100 रुपए तक पहुंच जाए, तभी निवेश करना चाहिए, भले ही रिटर्न थोड़ा कम मिले।

ध्यान रखे। शेयर बाजार में जोखिम की बात को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस जोखिम को नाथने के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी है। इसी कड़ी में आपको एक नई कंपनी से परिचित करा रहा हूं। इसका नाम है अदि फाइनकेम। स्मॉलकैप कंपनी है। केवल बीएसई में लिस्टेड है। इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर (कोड – 530117) शुक्रवार 26 अक्टूबर 2012 को दो फीसदी घटकर 66 रुपए पर बंद हुआ है। इस आधार पर उसका बाजार पूंजीकरण महज 75 करोड़ रुपए का है। कंपनी की 11.40 करोड़ रुपए की इक्विटी का 62.87 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है तो इसका फ्लोटिंग स्टॉक 30 करोड़ रुपए का हुआ। सितंबर 2012 तक की स्थिति के अनुसार उसके 0.79 फीसदी शेयर एफआईआई के पास हैं। जून 2012 तक यह हिस्सा 0.90 फीसदी का था।

अदि फाइनकेम गुजरात की कंपनी है। अहमदाबाद जिले के साणंद ताल्लुका में इसकी फैक्टरी है। 1985 में इसका गठन हुआ। तब इसका नाम एच के फाइनकेम हुआ करता था। लेकिन 2010 से इनमें नए प्रवर्तक आ गए हैं। इसलिए पुराने इतिहास का कोई खास मतलब नहीं है। कंपनी ओलियो केमिकल्स बनाती है जिसका इस्तेमाल पेंट, इंक, रेज़िन, टेक्सटाइल व बायोडीजल जैसे तमाम उद्योगों में होता है। वह पोषण व स्वास्थ्य से जुड़े कुछ उत्पाद भी बनाती है जो प्राकृतिक विटामिन, कॉस्मेटिक, दवा और खाद्य उद्योग में इस्तेमाल होते हैं। वह अमेरिका व जापान को निर्यात भी करती है। पिछले साल उसकी बिक्री का 28.19 फीसदी हिस्सा निर्यात से आया था। उसका मुख्य कच्चा माल सूरजमुखी और सोयाबीन तेल की रिफाइनिंग के दौरान बायो-प्रोडक्ट के रूप में निकला प्राकृतिक तेल और फैट है।

साफ है कि कंपनी का सीधा वास्ता आम उपभोक्ता से नहीं, बल्कि उद्योगों से है। इसलिए मार्केटिंग का उसका खर्च न के बराबर है। कंपनी का धंधा चौकस चल रहा है। बीते साल 2012-13 में उसने 96.73 करोड़ रुपए की बिक्री पर 7.38 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था जो साल भर पहले से क्रमशः 68.27 फीसदी और 45.36 फीसदी ज्यादा है। इस साल जून तिमाही में उसकी बिक्री पिछले साल की समान अवधि से 42.45 फीसदी बढ़कर 34.26 करोड़ और शुद्ध लाभ 4.84 फीसदी बढ़कर 3.03 करोड़ रुपए हो गया। पिछली पांच तिमाहियों की बात करें तो कंपनी की बिक्री औसतन 67 फीसदी और सकल लाभ 40 फीसदी की दर से बढ़ा है। लाभ मार्जिन से लेकर तमाम वित्तीय अनुपातों में कंपनी की स्थिति टनाटन है। कंपनी को कार्यशील पूंजी के लिए अच्छा-खास ऋण लेना पड़ता है जिस पर ब्याज भी ठीकठाक जाता है। जैसे जून 2012 की तिमाही में उसने 63.21 लाख रुपए का ब्याज चुकाया ह। लेकिन कंपनी का लंबे समय का ऋण बहुत मामूली है। इस लिहाज से उसका ऋण इक्विटी अनुपात मात्र 0.07 निकलता है।

कंपनी ने पिछले दो सालों में 10 फीसदी लाभांश (dividend) दिया है। अभी इसी जुलाई में उसने हर पांच शेयर पर एक शेयर का बोनस भी दिया है। पांच साल पहले यह शेयर 9.19 रुपए तक नीचे जा चुका है। करीब साल भर पहले 22 दिसंबर 2011 को यह 35.90 रुपए पर था। वहां से 134 फीसदी उछलकर यह 8 सितंबर 2012 को 84 रुपए पर पहुंच गया। अभी 65-66 रुपए पर है। जानकार बताते हैं कि यह लंबी रेस का घोड़ा है। साल भर में 90 रुपए तक आसानी से चला जाएगा। लेकिन एक मुश्किल है कि कंपनी के प्रबंधन की पूरी जानकारी सहजता से उपलब्ध नहीं है। न तो उसकी वेबसाइट पर और न ही दूसरे स्रोतों पर। कंपनी के चेयरमैन उत्कर्ष शाह और प्रबंध निदेशक नाहूश जरीवाला हैं।

हमारा सुझाव है कि कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेंस की स्थिति की पड़ताल भी अपने स्तर पर कर लेनी चाहिए। खासकर, गुजरात के निवेशक अगर कुछ जानते हों तो यहां अपनी जानकारी दूसरों के साथ बांट सकते हैं। कहने का सार यह है कि निवेश के पहले कुछ और तहकीकात जरूरी है। एक और बात यह है कि फ्लोटिंग स्टॉक कम होने से इसमें तरलता कम है। इसमें ज्यादा खरीद-बिक्री में मुश्किल होती है।

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