बजाज इलेक्ट्रिकल्स देश की बड़ी व नामी कंपनी है जिस पर शायद ही कोई दो राय होगी। 72 साल पुरानी कंपनी है। शेखर बजाज इसके चेयरमैन व प्रबंध निदेशक हैं। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में इसकी बिक्री 2739.43 करोड़ और शुद्ध लाभ 143.79 करोड़ रुपए रहा है। कंपनी की इक्विटी 19.90 करोड़ रुपए है जो दो रुपए अंकित मूल्य के 9.95 करोड़ शेयरों में विभाजित है। इस तरह सालाना आधार पर उसका ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 14.63 रुपए निकलता है।
लेकिन इधर चालू वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ साल भर की तुलना में 50.84 फीसदी गिरकर 22.50 करोड़ रुपए से 11.06 करोड़ रुपए पर आ गया। हालांकि बिक्री इसी दौरान 483.69 करोड़ रुपए से 12.48 फीसदी बढ़कर 544.07 करोड़ रुपए हो गई। लाभ के घटने की मुख्य वजह ब्याज अदायगी का 5.69 करोड़ से बढ़कर 10.67 करोड़ और कच्चे माल की लागत का 35.57 करोड़ से बढ़कर 50.26 करोड़ रुपए हो जाना है।
अपेक्षाकृत खराब तिमाही नतीजों के कारण कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस अब घटकर 13.64 रुपए पर आ गया है। उसका शेयर कल बीएसई (कोड – 500031) में 5.14 फीसदी गिरकर 170.55 रुपए और एनएसई (कोड – BAJAJELEC) में 4.49 फीसदी गिरकर 170.30 रुपए पर बंद हुआ है। यही नहीं कल, 24 अगस्त को उसने एनएसई में 164 रुपए और बीएसई में 164.15 रुपए पर 52 हफ्ते का नया न्यूनतम स्तर भी बना डाला। शेयर इस समय 12.5 के पी/ई के अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जो बजाज जैसे ब्रांड वाली कंपनी में निवेश के लिए आकर्षक स्तर माना जाएगा। वैसे भी इतने कम पी/ई पर उसका शेयर अक्टूबर 2009 के बाद कभी नहीं ट्रेड हुआ है। अक्टूबर 2009 में यह 10.57 के पी/ई तक गिर गया था। यह शेयर पिछले साल 7 अक्टूबर 2010 को 347 रुपए का शिखर पकड़ चुका है। तब इसका पी/ई अनुपात 29.82 पर था। कितना बढ़ सकता है, इसका अंदाजा आप अपने हिसाब से लगा सकते हैं।
सवाल उठता है कि यह शेयर इस समय इतना गिरा तो आखिर गिरा क्यों? यूं ही कोई बेवफा नहीं होता, की तर्ज पर, इस तरह बजाज इलेक्टिकल्स के तलहटी पकड़ने की कुछ तो वजहें रही होंगी। एक तो प्रत्यक्ष वजह जून तिमाही के खराब नतीजे हैं। लेकिन इन नतीजों की घोषणा 28 जुलाई को हुई थी। उसके एक दिन पहले यह शेयर 237.65 रुपए और एक दिन बाद 219.10 रुपए पर बंद हुआ था, जबकि खुद 28 जुलाई को यह 238 रुपए तक जाने के बाद 216.85 रुपए पर बंद हुआ था। कहा जाता है कि बाजार को पहले से आनेवाली चीजों का अंदाजा रहता है जिसे वह डिस्काउंट करके चलता है। नतीजे आए, हकीकत सामने आ गई। शेयर गिरते तो फौरन गिरते। यह अचानक बत्ती धीरे-धीरे ढाई हफ्तों में 24.3 फीसदी कैसे डिम हो गई?
नतीजों के बाद जो भी हुआ है, अच्छा हुआ है। कंपनी की 72वी सालाना आमसभा का ब्योरा पिछले हफ्ते 19 अगस्त को जारी किया गया है। बताया गया कि कंपनी ने जहां पिछले साल दो रुपए के शेयर पर 2.40 रुपए (120 फीसदी) का लाभांश दिया था, वहीं इस साल 2.80 रुपए (140 फीसदी) का लाभांश दिया जा रहा है। कंपनी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत पर्यावरण मित्र नाम के एनजीओ को आगे बढ़ा रही है। कंपनी वित्त वर्ष 2013-14 में अपने 75वें साल में प्रवेश करेगी। तब तक कंपनी अपने बाजार पूंजीकरण को 2418.73 करोड़ रुपए से 5000 करोड़ रुपए से ऊपर पहुंचा देगी। यही नहीं, कंपनी चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अपना धंधा बढ़ाने के लिए 59.58 करोड़ रुपए का पूंजी खर्च करेगी।
इसमें तो कोई नकारात्मक बात है कि उसके शेयर को पीटकर 52 हफ्तों की तलहटी पर पहुंचा दिया जाता? किसी भी लिस्टेड कंपनी के लिए शेयर के भावों को प्रभावित करनेवाली हर सूचना को सार्वजनिक करना जरूरी होता है। अगर कोई भी अघोषित खबर के आधार पर शेयरों में ट्रेडिंग करता है तो इसे इनसाइडर ट्रेडिंग माना जाता है जो कानूनन अपराध है। दिक्कत यह है कि बाजार के उस्ताद लोग या तो अघोषित खबरों के आधार पर किसी शेयर को पीटते हैं या जान-बूझकर चालबाजी करते हैं। बजाज इलेक्ट्रिकल्स के मामले में तो यह ऑपरेटरों का खेल लगता है।
कंपनी की कुल इक्विटी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी जून 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार 64.78 फीसदी है। लेकिन इस महीने 4 अगस्त से 18 अगस्त के बीच प्रवर्तक परिवार से जुड़ी गीतिका बजाज ने कंपनी के 6 लाख से ज्यादा शेयर खरीदे हैं। 4 अगस्त को गीतिका के पास कंपनी के 53,771 शेयर थे, जबकि 18 अगस्त तक उनके पास कुल 6,59,546 शेयर (0.66 फीसदी) हो गए हैं। हालांकि गीतिका का नाम कंपनी के 41 प्रवर्तकों में नहीं दर्ज है। कंपनी की बाकी 35.22 फीसदी इक्विटी पब्लिक के पास है जिसमें से 9.04 फीसदी एफआईआई और 11.20 फीसदी डीआईआई के पास है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 16,899 है। इसमें से प्रवर्तकों से भिन्न चार बड़े शेयरधारकों के पास 7.33 फीसदी शेयर हैं।