रूप तात्कालिक है, गुण स्थाई है। शरीर नश्वर है, आत्मा स्थाई है। आईटी सेक्टर अगस्त महीने का सबसे बुरा सेक्टर रहा जिसकी अहम वजह है डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट का अभाव। यह स्टॉक एक्सचेंजों के लिए ड्रैकुला या वैम्पायर बना हुआ है। मेरे पास इसके लिए कोई शब्द नहीं है क्योंकि यह स्थिति सचमुच सभी ट्रेडरों व निवेशकों का खून चूसे जा रही है। इसके चलते आज 95 फीसदी निवेशक लगभग अपनी सारी पूंजी गंवा चुके हैं और निवेश करने की हालत में नहीं हैं।
शेयर बाजार के कैश से संपन्न जो मूल निवेशक थे, वे तो 1992 के बाद बदला सिस्टम खत्म होने के बाद ही बाजार से निकल चुके हैं और एफडी व रीयल एस्टेट में धन लगा रहे हैं जहां उन्हें अच्छा लाभ भी मिला है। उनकी जगह जो नए निवेशक आए हैं, वे हैं एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) जिनके पास अपना कुछ खोने के लिए नहीं है क्योंकि वे विदेशी अवाम का धन इकट्ठा करके यहां लगाते और गंवाते हैं।
हां, कुछ शातिर ऑपरेटरों ने इस धंधे को समझ लिया है और जमकर दौलत बटोरी है। कैश सेटलमेंट का यह सिस्टम उन मुठ्ठी भर लोगों की मदद करता है जो डेरिवेटिव्स में लगातार बिकवाली से बाजार को छिछला बनाए रखने की कुव्वत रखते हैं। वे कैश बाजार में थोड़ा-थोडा करके डिलीवरी के लिए बेचते रहते हैं क्योंकि कैश सेगमेंट ही नहीं रहेगा तो उन्हें डेरिवेटिव्स में खेलने का मौका ही नहीं मिलेगा।
इसलिए ऐसा सेटलमेंट हो ही नहीं सकता जिसमें भावों को 30 से 50 फीसदी गिरा दिया जाए तो उस्ताद लोग आखिरी दिन बाजार को धूल चटाने की जुगत में लगे रहते हैं। इस बार आईटी सूचकांक और स्टॉक्स को बिना किसी वजह के धुन डाला गया। हकीकत यह है कि टीसीएस और इनफोसिस स्तरीय स्टॉक हैं और उनकी श्रेष्ठता कायम रहेगी।
यही वजह है कि काफी लंबे समय बाद मैं अब इस सेक्टर में निवेश की सिफारिश कर रहा हूं। इनफोसिस और टीसीएस मेरे दो शीर्ष चुनाव हैं। इसके अलावा आप सीएनएक्स आईटी सूचकांक तीन महीने के लिए खरीद सकते हैं। मैं इस सेक्टर में बहुत तेजी से 25 फीसदी सुधार के आसार देख रहा हूं। अमेरिका के क्रेंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनान्के भारतीय समय के अनुसार करीब साढ़े सात बजे अहम वक्तव्य देनेवाले हैं। लेकिन इसको लेकर अजीब-निराशा पूरी दुनिया में छाई है। निफ्टी भी हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन 1.90 फीसदी गिरकर 4800 के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे 4747.80 पर पहुंच गया, वहीं बीएसई सेंसेक्स 1.84 फीसदी गिरकर 16,000 के नीचे जाकर 15,848.83 पर बंद हुआ।
आज क्यूई-3 की घोषणा नहीं होने जा रही है। अमेरिकी बाजार को अब यह अच्छी तरह पता है। लेकिन फेडरल रिजर्व जिस बात से सभी को चौंका सकता है, वह है 30 सालों के दीर्घकालिक बांडों की बिक्री। साथ ही वह हाल-फिलहाल परिपक्व होनेवाले बांडों की खरीद कर सकता है जिससे छोटी अवधि में तरलता पैदा होगी और अमेरिकी बाजार 5 फीसदी बढ़ जाएंगे। इसका असर बाद में भारत पर भी नजर आएगा।
मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में एक और वृद्धि को बाजार मानकर और गिनकर चल रहा है। चूंकि रिजर्व बैंक सप्लाई को बढ़ाने के बजाय महज मौद्रिक उपायों का गलत तरीका पकड़े हुए है, इसलिए मुद्रास्फीति अगले एक साल तक नीचे नहीं उतरनेवाली है। लेकिन अर्थव्यवस्था एक और ब्याज वृद्धि को पचाने की हालत में नहीं है। ब्याज दर मुद्रास्फीति को रोकने के लिए बढ़ाई जा रही है। लेकिन हकीकत में यह मुद्रास्फीति को बढ़ा रही है क्योंकि ब्याज दरें बढ़ने से उन सभी जिंसों के दाम बढ़ जा रहे हैं जिनका वास्ता रिटेल व्यापार से है।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर वह स्थिति ज्यादा दूर नहीं है जब सारा बाजार एक स्वर से कहेगा कि हमें अब ब्याज दरों में वृद्धि के कोई डर नहीं लगता। इसलिए लंबी सोच के साथ निवेश करना समय बीतने के साथ निश्चित रूप से फायदा दिलाएगा।
भाग्य वह संयोग है जब आपकी तैयारी सही अवसर से मिल जाती है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का फीस-वाला कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)