भारतीय शेयर बाजार की तेज़ी सारी दुनिया के निवेशकों को खींचे पड़ी है। सभी यहां निवेश करने को लालायित हैं। लेकिन सवाल उठता है कि हमारे बाज़ार की तेज़ी का सत्व क्या है और हवाबाज़ी कितनी है? पहली बात निफ्टी-50 में बैकिंग व वित्तीय सेवाओं का भार सबसे ज्यादा 33.95% है। इस तरह इसका 1/3 से ज्यादा हिस्सा वास्तविक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर कृषि, व्यापार व आईटी जैसी अन्य सेवाएं शामिल हैं। बैंकिंग व फाइनेंस में भी सनसनी मचाई है सरकारी बैकों ने। इस साल 28 मार्च से 6 अक्टूबर तक जहां निफ्टी बैंक सूचकांक 12.11% और निफ्टी प्राइवेट बैंक सूचकांक 14.49% बढ़ा है, वहीं निफ्टी पीएसयू बैंक सूचकांक 46.28% उछला है। लेकिन कुछ साल पहले तक डूबत ऋणों या एनपीए के बोझ के नीचे कराहते सरकारी बैंकों की सेहत क्या इतनी अच्छी हो गई है? अगर हां तो यह चमत्कार कैसे हासिल हुआ? सरकारी बैंकों के शेयरों की चमक में कहीं ‘ऊंची दुकान, फीके पकवान’ की कहावत हमें मुंह तो नहीं चिढ़ा रही? बाज़ार में हम ट्रेडिंग करें या लम्बे समय का निवेश, हमें इन सवालों का तह में पहुंचना ही होगा। नहीं तो बड़ा घोखा हो सकता है। अब सोमवार का व्योम…
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