जिस नई औद्योगिक नीति पर दो साल से ज्यादा वक्त से काम चल रहा था, जिसका ड्राफ्ट साल भर पहले दिसंबर में ‘मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ के नाम से जारी किया गया था, जिसे लाइसेंस-परमिट राज को खत्म के लिए 1991 में लाई गई ऐतिहासिक औद्योगिक नीति की जगह लेनी थी, उसे अब सरकार ने अनिश्चितकाल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया है। उसने इसकी जगह प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम से काम चलाने का फैसला किया है। पीएलआई स्कीम कंपनियों को निवेश करने के लिए खैरात या सब्सिडी बांटने की योजना है। इसमें 14 क्षेत्रों को अगले तीन-चार साल तक 1.90 लाख करोड़ रुपए की सरकारी मदद दी जानी है। यह 2019 में उठाया गया कुछ उसी तरह का कदम है जिसमें केंद्र सरकार ने विशेष टैक्स छूट देकर कॉरपोरेट क्षेत्र को 1.45 लाख करोड़ रुपए का पैकेज दिया था। दिक्कत यह है कि ऐसे प्रोत्साहनों के बावजूद देश के जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान 15% से 17% तक अटका पड़ा है, जिसे 2011 में ही तब की यूपीए सरकार ने 2022 तक 25% तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया था। बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह लक्ष्य दोहराया था। मगर करनी में, सब्सिडी देकर कॉरपोरेट से चंदा और सब्सिडी से ही जनता से वोट। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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