स्टील बनाने का मुख्य कच्चा माल आइरन ओर है। लेकिन देश में स्टील का उत्पादन मांग से कम होने के बावजूद हम आइरन ओर का जमकर निर्यात करते हैं। यहां तक कि भारत दुनिया में आइरन ओर का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
इस्पात मंत्रालय की तरफ से दी गई अद्यतन जानकारी के अनुसार अप्रैल-दिसम्बर 2010 के दौरान देश में 464.40 लाख टन स्टील घरेलू इस्तेमाल के लिए उपलब्ध था, जबकि इसकी मांग 518 लाख टन की थी। इस प्रकार इसकी मांग कुल उपलब्धता से 53.60 लाख टन ज्याद थी। इसी प्रकार वर्ष 2009-10 के दौरान 561.70 लाख टन स्टील घरेलू इस्तेमाल के लबए उपलब्ध था, जबकि इसकी मांग 635.50 लाख टन की थी। इस प्रकार इसकी मांग और आपूर्ति के बीच 73.80 टन का अंतर था।
स्टील की घरेलू मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। दूसरी तरफ हमने 2009-10 में निकाले गए 2260 लाख टन आइरन ओर में से 1173.7 लाख टन यानी 51.93 फीसदी निर्यात कर दिया। इस निर्यात का अधिकांश हिस्सा चीन को जाता है जो दुनिया का सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है। हालांकि 2010-11 में भारत के आइरन ओर के निर्यात में 20 फीसदी कमी आने का अनुमान है क्योंकि कर्नाटक में अवैध खनन के चलते जुलाई 2010 में इसके निर्यात पर बैन लगा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी महीने 6 अप्रैल से यह बैन हटा दिया है।
देश में पर्याप्त आइरन ओर होने के बावजूद तमाम स्टील परियोजनाएं अटकी हुई हैं। वह भी तब, जब जुलाई 1991 में घोषित नई औद्योगिक नीति के तहत स्टील संयंत्र को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है और इसे निजी क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की सूची से हटा दिया गया है। इसलिए औद्योगिक (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के तहत स्टील संयंत्र स्थापित करने के लिए किसी औद्योगिक लाइसेंस की ज़रूरत नहीं है।