शेयर बाज़ार में नियमन के नाम पर किसी भी विचार को दबाना बाज़ार के विकास को कुंठित करना है। ऐसा करने पर बाजार मूल्य-खोज की भूमिका ही नहीं निभा सकता। यहां तो हज़ारों विचारों को खुलकर टकराने देना चाहिए। नहीं तो बाज़ार का आधार व्यापक नहीं, बल्कि मुठ्ठी भर ऑपरेटरों के हाथ में सिमटकर रह जाएगा। आज भारतीय शेयर बाज़ार की हालत कमोबेश ऐसी ही है। अब इसके ऊपर सेबी डिजिटल प्लेटफॉर्म को मान्यता देने के नाम पर अभिव्यक्ति पर बंदिश लगा देती है, तब यह देश के पूंजी बाज़ार के लिए घातक होगा। हमें समझना चाहिए कि हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आई कि अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों को जबरन चढ़ाया गया है तो अडाणी समूह की तरफ से भी जवाब आया कि यह स्थिति नहीं है और सारे आरोप निराधार हैं। तमाम एनालिस्टों ने भी खुलकर अलग-अलग राय रखी। जिन निवेशकों ने हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट को सही माना, उन्होंने अडाणी के शेयर बेचे और जिन्होंने गलत माना, उन्होंने शेयरों को होल्ड करके रखा। बाज़ार में हर वक्त आशावादी, निराशावादी और यहां तक कि न्यूट्रल विचार मौजूद रहते हैं। इनके टकराव के बीच कयासबाज़ी व सट्टेबाज़ी चलती है, तभी तो मूल्य निखरता है। इसे रोकना एकदम प्रतिगामी और सरासर गलत है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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