देश की पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी की ज़िम्मेदारी है कि वो करोड़ों मासूम निवेशकों की हिफाजत करे। सुनिश्चित करे कि बाज़ार में पहले से लिस्टेड और आईपीओ लाने वाली नई कंपनियां सारी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराएं। लेकिन यहां तो स्थिति यह है कि खुद सेबी की चेयरपरसन माधबी पुरी बुच ने अडाणी की ऑफशोर कंपनियों में अपने निवेश की बात छिपाई है। उन पर पूंजी बाज़ार के नियमों की अवहेलना करने और पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने के गंभीर आरोप हैं। सरकार उनके खिलाफ कुछ नहीं कर रही। लेकिन सेबी संसद द्वारा निर्मित स्वायत्त संस्था है तो सेबी प्रमुख संसद के प्रति जवाबदेह हैं। मगर, सरकार के मेहरबान होने से बुच ऐसी पहलवान बन गई हैं कि संसद की लोक लेखा समिति के सम्मन पर पहुंचीं ही नहीं। जिन्हें बाज़ार को सच पर आधारित बनाने की ज़िम्मेदारी है, वे ही झूठ को छिपाने में लग गई हैं। यही नहीं, अब तो सेबी ऐसा कुछ करने जा रही है जिससे कोई भी खुलकर सेबी और शेयर बाज़ार पर सोशल मीडिया पर कुछ बोल या लिख नहीं सकता है। सेबी ने एक मशविरा पत्र जारी किया है जिसके मुताबिक डिजिटल मीडिया पर सेबी में पंजीकृत लोग भी अपनी बात खुलकर नहीं रख सकते। बोलने पर यह पाबंदी क्यों? अब बुधवार की बुद्धि…
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