बोल रहा दीया, कहो न आस निरास भई

त्योहारों का मौसम चलते-चलते दीपावली के पर्व तक आ पहुंचा। आशाओं व आकांक्षाओं के पूरा होने का पर्व। सुख, शांति, समृद्धि, कीर्ति व ऐश्वर्य का पर्व। असत्य पर सत्य की जीत का पर्व। भारतवर्ष में सदियों से चली आ रही परम्परा का पर्व। इसमें सबसे पहले पाली भाषा में कहा गया, “सब्बे सत्ता सुखी होन्तु, सब्बे होन्तु च खेमिनो। सब्बे भद्राणि पस्सन्तु, मा किंचि पाप माग मा, मा किंचि सोक माग मा, मा किंचि दुख माग मा॥” फिर उसे ही संस्कृत भाषा में संस्कारित करके लिखा गया, “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥” भाव व भावना यही है कि सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। आज घर-परिवार व गांव-गिरांव से निकलकर फलक बहुत व्यापक हो गया है। पैमाना व्यक्ति ही नहीं, देश की समृद्धि का हो गया है। ऐसे में हमें दीवापली के इस महापर्व पर थाह लेनी पड़ेगी कि देश में आशाओं व आकांक्षाओं की क्या स्थिति है? सुख और शांति की यात्रा कहां तक पहुंची है? देशवासियों में समृद्धि व ऐश्वर्य की कितनी प्रगति हुई है? अब सोमवार का व्योम…

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