आज के दौर में डिमांड हो तो कोई भी सप्लाई लेकर पहुंच जाता है। लेकिन सप्लाई ही सप्लाई हो और डिमांड न हो तो धंधा ही नहीं, अर्थव्यवस्था तक बैठ जाती है। इसमें भी अगर सप्लाई का इंतज़ाम सरकार की तरफ से किया जा रहा हो तो इसका फायदा तंत्र से चिपकी जोंकों को ही होता है, व्यापक अवाम को नहीं। प्रधानमंत्री जनधन योजना का भी यही हाल है। हर जनधन खाते के साथ प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना और मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी) स्कीम खुद-ब-खुद नत्थी कर दी गई है। इसमें से मुद्रा स्कीम में बैंक लोन देते हैं तो उस पर पूरा ब्याज वसूलते हैं। जीवन ज्योति बीमा योजना में मरने पर नॉमिनी को दो लाख रुपए मिलते हैं, बशर्ते गरीब सालाना 436 रुपए का प्रीमियम देता रहे। सुरक्षा बीमा योजना में भी बैंक खाते से हर साल 20 रुपए का प्रीमियम ऑटो-डेबिट हो जाता है और पूरी तरह विकलांग होने या मरने पर नॉमिनी को दो लाख रुपए मिलते हैं। अटल पेंशन योजना में कम से कम 20 साल तक नियमित प्रीमियम देने पर 60 साल का होने के बाद एक से पांच हज़ार रुपए तक की पेंशन मिलेगी। साफ है कि जनधन योजना से बैंकों और बीमा कंपनियों को नया धंधा मिल गया और खाताधारक देश के भ्रष्ट वित्तीय तंत्र का नया शिकार बन गया। अब बुधवार की बुद्धि…
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