बाज़ार की शक्तियां जितना मुक्त होकर काम करेंगी, उनकी दक्षता उतनी ही अधिक होगी। लेकिन रिजर्व बैंक देश के भीतर ही नहीं, देश के बाहर भी रुपए से जुड़े करेंसी डेरिवेटिव्स को कंट्रोल करने की फिराक में है। उसने इसी साल अप्रैल में प्रस्ताव रखा ताकि वो ऑफशोर बगैर-डिलीवरी वाले फॉरवर्ड (एनडीएफ) बाज़ार पर नियंत्रण कर सके। उसका कहना है कि इस बाज़ार में सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (ईटीएफ) उसके पास पंजीयन कराएं क्योंकि इन पर भारत के निवासी ट्रेड कर सकते हैं तो रिजर्व बैंक का कंट्रोल ज़रूरी है। यह उसी तरह की बात हुई कि सेबी कहे कि न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज उसके पास रजिस्ट्रेशन कराए क्योंकि उसमें भारत के निवासी भी ट्रेड करते हैं। बताते हैं कि इधर जब डॉलर 84 रुपए तक चढ़ गया तो रिजर्व बैंक ने देश के कुछ बड़े व्यावसायिक बैंकों को मौखिक निर्देश दिया कि वे रुपए के बरक्स अपनी मौजूदा ट्रेडिंग पोजिशन न बढ़ाएं ताकि रुपए का ज्यादा अवमूल्यन रोका जा सके। इसी तरह दो हफ्ते पहले 16 अगस्त को रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने व्यापार भुगतान को डॉलर के बजाय रुपए में सेटल करें। मतलब, वे डॉलर का रास्ता अपनाने के बजाय रुपए को सीधे दिरहम में बदले और दिरहम को रुपए में। यह तो बाज़ार को सीधे नहीं तो चोरी-छिपे कंट्रोल करने जैसी बात हो गई। फिर कैसे खिलेगा बाजार? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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