बाज़ार जितना विकसित, जितने ज्यादा भागीदार और वोल्यूम जितना ज्यादा, उसमें ताकतवर शक्तियों द्वारा जोड़-तोड़ करने की गुंजाइश उतनी ही कम हो जाती है। यह बात आम बाज़ार के साथ ही शेयर व करेंसी बाज़ार समेत समूचे वित्तीय बाज़ार पर लागू होती है। नियामक संस्थाओं का काम बाज़ार का नियंत्रण नहीं, बल्कि नियमन है ताकि वो अच्छी तरह विकसित हो सके। लेकिन इस साल के शुरू में बैंकिंग व मुद्रा क्षेत्र के नियामक रिजर्व बैंक ने ऐसा नियम थोप दिया जिससे देश के फॉरेक्स एक्सचेंजों में ट्रेडिंग का वोल्यूम धीरे-धीरे 80% तक गिर गया। बता दें कि करेंसी बाज़ार में फ्यूचर्स व ऑप्शंस ट्रेडिंग के दिशानिर्देश रिजर्व बैंक ने साल 2008 में पेश किए। वह इनमें साल 2016 तक 11 सर्कुलर जारी कर बहुत-सारे बदलाव कर चुका था। फिर भी भारत में कार्यरत कोई भी कंपनी, ट्रेडर, सटोरिया या निर्यातक रुपए से जुड़े करेंसी डेरिवेटिव्स में 10 करोड़ डॉलर तक की पोजिशन ले सकता है और बताने की ज़रूरत नहीं थी कि मकसद क्या है। लेकिन जनवरी 2024 में रिजर्व बैंक ने सर्कुलर जारी कर दिया कि 5 अप्रैल से सभी को मकसद बताना पड़ेगा कि यह किन सौदों की हेजिंग के लिए है। इससे तमाम रिटेल ट्रेडर व सटोरिये बाजार से भाग खड़े हुए। ट्रेडिंग वोल्यूम 80% गिर गया। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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