करोडों बेरोजगारों के लिए रोज़ी-रोज़गार के अवसर और रोज़ी-रोज़गार में लगे लोगों की आय व बचत को बढ़ाना। यही हमारी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है। इसे सुलझाने से ही देश में मांग या खपत बढ़ेगी, जिससे निजी क्षेत्र नया पूंजी निवेश करेगा। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लगता है कि स्टैंडर्ड डिडक्शन ₹50,000 से बढ़ाकर ₹75,000 कर देने और टैक्स-स्लैब में मामूली फेरबदल कर देने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ जाएगी। इससे 15 लाख से ज्यादा आय वाले लोगों का अधिकतम ₹17,500 बचेंगे। बता दें कि आम भारतीय की औसत सालाना आय सवा-डेढ़ लाख से भी कम है। वित्त मंत्री झांसा दे रही हैं कि कंपनियों के मालिक नए कर्मचारियों के ईपीएफ का ₹3000 प्रतिमाह तीन साल तक दे देने से नए लोगों को काम पर रख लेंगे और एक करोड़ अप्रेंटिसों को 500 बड़ी कंपनिया खपा लेंगी। इन हवा-हवाई बातों के बीच ज़मीनी डेटा यह है कि देश का समूचा मध्यवर्ग ज्यादा टैक्स, खाने-पीने की चीज़ों, पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस, स्वास्थ्य, टोल टैक्स, सेस और जीएसटी की बढ़ती वसूली से परेशान है। भारतीय घरों की वित्तीय बचत जीडीपी के 5.3% पर आ चुकी है जो इतिहास में कभी इतनी नहीं गिरी थी। फिर भी सरकारी वसूली कितनी बेरहम है, इसका ताज़ा साक्ष्य यह है कि इस साल अप्रैल-जून की तिमाही में इनकम टैक्स संग्रह ₹3.61 लाख करोड़ है, जो ₹2.65 लाख करोड़ के कुल कॉरपोरेट टैक्स संग्रह से लगभग ₹1 लाख करोड़ ज्यादा है। अब बुधवार की बुद्धि…
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