भारत में बढ़ती आर्थिक विषमता पर दस साल से देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठे नरेंद्र मोदी का बयान बेहद उथला और दुखद है। खासकर, तब जब वे और उनका दल भाजपा रामराज्य को अपना आदर्श बताते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है, “राम राज बइठे त्रैलोका, हरषित भए गए सब सोका। बैर न कर काहू सन कोई, राम प्रताप बिषमता खोई।” रामराज्य में आर्थिक ही नहीं, मानसिक विषमता तक की कोई जगह नहीं थी। लेकिन प्रधानमंत्री कहते हैं कि लोग अमीर बनते जाएंगे तो गरीबों को उनकी स्थिति से ऊपर उठाते जाएंगे। अरे, यही ‘ट्रिकल-डाउन’ सिद्धांत तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने से चला आ रहा है। मगर गरीबी मिटी नहीं। मोदी के दस साल के शासन के बाद तो हालत यह हो गई है कि आर्थिक विषमता में भारत दुनिया में पहले नंबर पर आ गया है। यहां तक कि इस विषमता ने गुलामी के ब्रिटिशराज को भी मात दे दी है। पेरिस से काम कर रही जानेमाने अर्थशास्त्रियों की संस्था वर्ल्ड इनिक्वलिटी लैब ने दो महीने रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक भारत में शीर्ष के 1% अमीरों की आय देश की कुल आय की 22.6% है। यह हिस्सा अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, ब्राज़ील व दक्षिण अफ्रीका तक से अधिक है। केवल पेरू व यमन जैसे छोटे देशों में भारत से ज्यादा आर्थिक विषमता है। अब बुधवार की बुद्धि…
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