सरकार की कोशिश है कि खर्च करनेवाले व्यक्तियों से जीएसटी और एक्साइज़ व कस्टम ड्यूटी के साथ ही अधिकतम इनकम टैक्स वसूल लिया जाए, जबकि लाभ कमानेवाली कंपनियों को टैक्स में ज्यादा से ज्यादा छूट दी जाए। इसके ऊपर कॉरपोरेट क्षेत्र को मिल रही ऋण-माफी और पीएलआई जैसी स्कीमों में दी जा रही सब्सिडी अलग से। लाखों करोड़ रुपए के ऐसे ‘प्रोत्साहन’ से आखिर क्या सचमुच देश का कोई भला हो रहा है, क्षमता विस्तार और नए उद्योग लगने से रोज़गार का सृजन हो रहा है या कंपनियां सरकार की कृपा के बदले अपनी बचत का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सत्ताधारी पार्टी को जमकर चंदा दे रही हैं? मोदी सरकार ने दूसरा कार्यकाल शुरू होने के चार महीने बाद कॉरपोरेट क्षेत्र को टैक्स में रियायत से ₹1.45 लाख करोड़ का तोहफा दे दिया। फिर दो साल बाद वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में पीएलआई स्कीम के तहत ₹1.97 लाख करोड़ का प्रोत्साहन दे डाला। दोनों कार्यकाल मिलाकर यह सरकार कॉरपोरेट क्षेत्र के ₹14.56 लाख करोड़ के ऋण बट्टेखाते में डाल चुकी है जिसमें से 48.36% या ₹7.41 लाख करोड़ के ऋण बड़ी कंपनियों के थे। इस बीच 2018-19 से 2020-21 तक के तीन सालों में ही केद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी और सेस लगाकर आम लोगों से ₹8.02 लाख करोड़ वसूल डाले। सरकार की यह उल्टी रीत क्यों? अब मंगलवार की दृष्टि…
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