भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी में दुनिया के 194 देशों में 144वें नंबर पर है। यह कैसा विकास है जिसमें निर्जीव आंकड़े है, लेकिन सजीव इंसान और उसके बाल-गोपाल गायब हैं? संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट कहती है कि 74.1% भारतीय स्वस्थ आहार जुटा पाने में असमर्थ हैं। विकास को मृत आंकड़ों से नहीं, जीवन के स्तर से नापा जाना चाहिए। हाथ में मोबाइल या हर झुग्गी में केबल टीवी आ जाने को विकास नहीं माना जा सकता। विकास का पैमाना यह है कि लोग कितने निर्भय व समर्थ है, भविष्य को लेकर कितने आश्वस्त व सुरक्षित हैं, रोज़ी-रोजगार को लेकर कितने निश्चिंत है और उनकी सृजन क्षमता व चिंतन-शक्ति कितनी विकसित हुई है। अब तो विकास सत्ता पाने का जुमला बन गया है। चुनाव जीतने के लिए हिंदू-मुसलमान का विभाजक एजेंडा, जिसे विकास की चादर से ढंक दिया जाता है। अरबपतियों के नज़रिए से देखो तो ज़रूर विकास हो रहा है। बार्कलेज़ हुरन इंडिया (बीएचआई) के मुताबिक 2014 में देश में 230 अरबपति थे, जबकि 2023 में इनकी संख्या 1319 हो चुकी है। अवाम की नजर से देखें तो इस समय देश में आत्महत्या करनेवालों में से एक तिहाई दिहाड़ी मजदूर हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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