भारत दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है तो स्वाभाविक रूप से यहां विदेश निवेश की बाढ़ आ जानी चाहिए थी। लेकिन धारणा के विपरीत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) शीर्ष पर पहुंचने के बाद तेज़ी से घटने लगा है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में देश में आया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 84.8 अरब डॉलर का था। इस निवेश में इक्विटी, भारत में निवेश से हासिल आय और अन्य पूंजी शामिल है। यही देश में आया काम का विदेशी निवेश होता है, जिससे उत्पादन प्रक्रिया में मूल्य जुड़ता और थोड़े-बहुत रोज़गार का सृजन होता है। बाकी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश तो विदेशी पूंजी के लिए खटाखट लाभ कमाने का ज़रिया है। चिंता की बात यह है कि बीते वित्त वर्ष 2022-23 में एफडीआई साल भर पहले से 16.27% घटकर 71 अरब डॉलर रह गया। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भी यही गति जारी है। सितंबर 2023 तक की छमाही में देश में आया एफडीआई साल भर पहले की समान अवधि के 26.9 अरब डॉलर से 23.87% घटकर 20.48 अरब डॉलर रह गया है। गौरतलब है कि जिस विदेशी निवेश में कोई बाधा नहीं है, जो सीधे सरकार के जरिए ऑटोमेटिक रूट या अधिग्रहण से आता है, उसमें भी 21.64% की कमी आई है। इस पर सरकार को गहराई से सोच-विचार करना चाहिए। अब सोमवार का व्योम…
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