वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में कर-मुक्त आय की सीमा 2.50 लाख रुपए के वर्तमान स्तर से मात्र 50,000 रुपए बढ़ाकर 3 लाख रुपए की है। लेकिन उन्होंने चारा फेंका है कि नई टैक्स प्रणाली के तहत अगर आप साल भर में 7 लाख रुपए तक कमाते हैं तो आपको कोई टैक्स नहीं भरना पड़ेगा क्योंकि आयकर कानून के सेक्शन 87-ए के तहत टैक्स रियायत की सीमा 12,500 रुपए से बढ़ाकर 25,000 रुपए कर की गई है। यह अलग बात है कि ये रियायत उन्हीं को मिल सकती है जिनकी सालाना आय 7 लाख रुपए तक है और जो पुरानी को एकदम छोड़ नई टैक्स प्रणाली अपनाते हैं।
सरकार ने टैक्स स्लैब की संख्या छह से घटाकर अब पांच कर दी है।
अब तक की स्थिति | नए वित्त वर्ष 2023-24 का प्रस्ताव |
कुल आय (₹) | टैक्स की दर (%) | कुल आय (₹) | टैक्स की दर (%) |
0–2.5 लाख | शून्य | 0-3 लाख | शून्य |
2.5 से 5 लाख | 5 | 3 से 6 लाख | 5 |
5 से 7.5 लाख | 10 | 6 से 9 लाख | 10 |
7.5 से 10 लाख | 15 | 9 से 12 लाख | 15 |
10 से 12.5 लाख
12.5 से 15 लाख |
20
25 |
12 से 15 लाख | 20 |
15 लाख से ऊपर | 30 | 15 लाख से ऊपर | 30 |
बजट के आयकर प्रस्तावों में सबसे बड़ा पेंच नई और पुरानी टैक्स प्रणाली का है और इसको लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। द हिंदू अखबार के मुताबिक पुरानी टैक्स प्रणाली 35 लाख रुपए तक की सालाना आय वालों के ज्यादा लाभप्रद है। टाइम्स ऑफ इंडिया का विश्लेषण कहता है कि सालाना 2 करोड़ रुपए तक की आय वाले के लिए पुरानी व नई टैक्स प्रणाली के असर में कोई अंतर नहीं है। वहीं, इकनॉमिक टाइम्स की गणना बताती है कि 60 लाख रुपए तक सालाना आयवालों के लिए पुरानी टैक्स प्रणाली ज्यादा फायदेमंद है। इतने भयंकर भ्रम की स्थिति में तो कोई कुशल चार्टर्ड एकाउंटेंट ही फाइनेंस बिल की बारीकियों में डूबकर ही सच निकाल सकता है।
लेकिन दो बातें एकदम साफ हैं। पहली यह कि सरकार की मंशा और कोशिश यही है कि करदाता पुरानी टैक्स प्रणाली को छोड़कर 2020 में लाई गई नई टैक्स प्रणाली को अपना लें। बजट में तय कर दिया गया है कि 1 अप्रैल 2023 से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष से नई टैक्स प्रणाली ही डिफॉल्ट टैक्स प्रणाली होगी। फिर भी जो लोग पुरानी टैक्स प्रणाली का फायदा लेना चाहते हैं, वे इसे वित्त वर्ष के एकदम शुरू में चुन सकते हैं। बजट दस्तावेज में यह भी साफ कर दिया गया है कि कोई भी करदाता केवल एक बार नई व पुरानी के बीच चुनाव कर सकता है। उसके बाद से उसे नई टैक्स प्रणाली ही अपनानी पड़ेगी। मुश्किल यह है कि नई टैक्स प्रणाली में करदाता को अब तक टैक्स निर्धारण में मिल रही करीब 70 कटौती व रियायतों के प्रावधान छोड़ने पड़ेंगे। इनमें 80-सी में मिल रही 1.50 लाख रुपए की रियायत और एलटीए व एचआरए (हाउस रेंट एलाउंस) जैसी तमाम कर कटौतियां शामिल हैं।
प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म वेद जैन एंड एसोसिएट्स का कहना है कि नई टैक्स प्रणाली में बदलाव किए गए हैं, जबकि पुरानी टैक्स प्रणाली को यथावत रखा गया है। इन दोनों के सम्मिलत असर से देश में बचत और सामाजिक सुरक्षा पर नकारात्मकर असर पड़ेगा। नई टैक्स प्रणाली में धर्मार्थ या कल्याणकारी संगठनों को दान के लिए भी किसी कर कटौती की पेशकश नहीं करती। कुल मिलाकर नए प्रावधावों से लोगों को म्यूचुअल फंड, बीमा, पेंशन योजनाओं और भविष्य निधि में निवेश जारी रखने या धर्मार्थ कारणों के लिए दान देने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता।
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इसी बात को ज्यादा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि पुरानी व नई टैक्स प्रणाली के इस हल्ले में भारत जैसे विकासशील देश में निजी बचत के महत्व को खत्म कर दिया गया है। जहां सरकार की तरफ से आबादी के बड़े हिस्से को कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जा रही, वहां उनकी निजी बचत ही लोगों की सामाजिक सुरक्षा का एकमात्र माध्यम है। नए बजट में भारत के बहुमत करदाता से सामाजिक सुरक्षा का घोंसला बनाने के तिनके भी छीन लिए गए हैं।
यह भी सच है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 तक सामान्य करदाता कुल 6.5 लाख रुपए तक की सालाना आय पर कर देने से बच सकता है। वह अपनी 6.5 लाख रुपए की आय में से 1.5 लाख रुपए 80-सी तरह बचा सकता है। इसके बाद बची 5 लाख रुपए की आय पर उसकी कर देयता 12,500 रुपए बनती है। चूंकि इतनी ही छूट उसे अभी तक आयकर कानून के सेक्शन 87-ए के तहत मिलती रही है। इसलिए पुरानी टैक्स प्रणाली का लाभ लेते हुए भी 6.50 लाख रुपए का सालाना आय पर उसकी करदेतया शून्य हो जाती है। लेकिन नए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट प्रावधानों के लागू होने के बाद पुरानी टैक्स प्रणाली की रियाय़तें अपनाने पर उसे अधिकतम 5 लाख रुपए की आय पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
वहीं, नई टैक्स प्रणाली में अभी से मात्र 50,000 रुपए ज्यादा 7 लाख रुपए की सालाना आय पर उसकी करदेयता शून्य रहेगी। कारण, नए टैक्स स्लैब से 3 लाख रुपए तक की आय कर-मुक्त है, जबकि उससे ऊपर छह लाख तक के तीन लाख रुपए पर 15,000 रुपए और इससे ऊपर के एक लाख रुपए पर 10,000 रुपए को जोड़कर कुल करदेयता 25,000 रुपए की बनती है। चूंकि उसे अब आयकर कानून के सेक्शन 87-ए के तहत 25,000 रुपए तक की टैक्स रियायत मिल जाएगी तो उसकी करदेयता शून्य हो जाएगी। इसी तरह की गणनाओं के जरिए करदाताओं को लुभाया जा रहा है कि वे पुरानी टैक्स प्रणाली की सारी रियायतें छोड़कर नई टैक्स प्रणाली अपना लें।
जानकारों का कहना है कि जैसे ही अधिकांश करदाता नई टैक्स प्रणाली अपना लेंगे, वैसे ही सरकार अगले बजट में एक झटके से टैक्स-रियायतों की सारी स्कीमें खत्म कर देगी। तब सामाजिक सुरक्षा से महरूम भारत का बहुमत सामान्य करदाता का वह अंतिम घोंसला भी चकनाचूर हो जाएगा जिसे वह बीमा, पीपीएफ, पेंशन व एफडी जैसे तिनकों से अभी तक बुनता रहेगा। यकीनन, तब सरकार को ज्यादा टैक्स मिलेगा और वह तथाकथित विकास के घोड़े तेज़ी से दौड़ा सकती है। लेकिन इस विकास के रथ के पहियों के नीचे भारत के व्यापक अवाम के निजी बचत के घोंसले कुचल दिए जाएंगे और वह अनाथ होने के साथ ही भगवान भरोसे होता चला जाएगा।