गाढ़ी कमाई के पैसे पर कोई अय्याशी नहीं करता। आसानी से मिले पैसे ही उड़ाए जाते हैं। मान लीजिए किसी ने दस साल में मेहनत से 50 लाख रुपए जुटाए हैं तो वह इसका बहुत हुआ तो 10 फीसदी हिस्सा ही कार, विदेश यात्रा और मौजमस्ती पर खर्च करेगा। लेकिन अगर किसी ने एक झटके में इतनी रकम बनाई है तो 100 फीसदी रकम वह महंगी कार, विदेश यात्रा, बिजनेस क्लास में सफर और फाइव स्टार होटलों में रहने वगैरह पर खर्च कर देगा। इस तरह भारत में बचत भी है और खर्चखोर कमाई भी। इसलिए विदेश से आनेवाले तमाम लक्जरी ब्रांडों को रिश्वतखोरी से कोई परेशानी नहीं है। दूसरी तरफ विदेशी पूंजी को यहां अपना धन आसानी के कई गुना करने की संभावना नजर आती है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि हाल के हाउसिंग लोन घोटाले या रिश्वतखोरी कांड से विदेशी निवेशक बिदक गए और उन्होंने शेयर बाजार को पीट डाला।
हमारे बाजार की संरचना ही कुछ ऐसी है कि यहां तमाम सीधे-टेढ़े खेल हो सकते हैं। सेंसेक्स में केवल 30 शेयर हैं। इसलिए आप दूसरे तमाम शेयरों को पीटकर भी इनफोसिस और भेल जैसे शेयरों को उठाकर सेंसेक्स को बढ़ा सकते हैं। बहुत पहले मुख्य सूचकांक का आधार 100 शेयरों का करने की चर्चा उठी थी, लेकिन वह पेशकश जाने कहां दफ्न हो गई। गौर करने की बात है कि बीते हफ्ते की धुनाई में सबसे ज्यादा नुकसान एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशकों को हुआ है। ये लोग उन मात्र दो फीसदी भारतीयों में हैं जो शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं। एचएनआई निवेशकों को मार्जिन कॉल के चलते कैश सेगमेंट में गिरे हुए भावों पर भी शेयर बेचने पड़े।
दूसरी खास बात यह है कि महज सात दिन की गिरावट में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का 1.14 लाख करोड़ रुपए का बाजार पूंजीकरण स्वाहा हो गया है। इसलिए आम निवेशकों से कही ज्यादा नुकसान सरकार को हुआ है। तीसरी और काफी अहम बात यह है कि सरकार को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स का भारी नुकसान हुआ है। ध्यान दें कि 15 दिसंबर तक इस तिमाही का एडवांस टैक्स भरना है। नियमतः कंपनियों या फर्मों को सटोरिया गतिविधि या शेयर बाजार से भी हुई आय पर 35 फीसदी टैक्स भरना होता है।
असल में बड़ा छंटा और मजा हुआ खेल चला है पिछले दिनों बाजार में। बहुत से खिलाड़ियों (कंपनियों व फर्मों) ने पहले ऊंचे भाव पर शेयर बेच डाले और भाव नीचे गिरने पर उन्हें खरीद लिया। सारा कुछ इस तरह कि इस तिमाही में निवेश पर फायदे के बजाय घाटा दिखा दिया जिससे कोई टैक्स न भरना पड़े। वहीं अपने ही किसी दूसरे खाते में पहले बेचे गए शेयर कम भाव पर फिर से खरीद लिए। शेयरों के औसत भाव और डिलीवरी के आंकडों पर नजर डालने से यह बात साफ हो जाती है। रिश्वतखोरी कांड में फंसी कंपनियों के बाहर के शेयरों पर भी वार किया गया। आईएफसीआई और आईडीबीआई बैंक का इस कांड से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन आईएफसीआई को 17 फीसदी और आईडीबीआई को 23 फीसदी तक गिरा दिया गया।
कम से कम 60 काउंटर ऐसे हैं जहां मार्जिन कॉल ट्रिगर हो गई और एचएनआई निवेशकों को हर हाल में अपने पोजिशन काटनी पड़ी। एचसीसी, एचडीआईएल, आईएफसीआई, सेंचुरी, के एस ऑयल, कोर प्रोजेक्ट्स, रेणुका शुगर, एबीजी शिपयार्ड, अपोलो टायर्स, अरेवा, बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक, डीसीबी, डेक्कन क्रोनिकल, ऑर्किड केमिकल्स, केनरा बैंक, एस्सार ऑयल, एडुकाम्प सोल्यूशंस, जीएमआर इंफ्रा, जीवीके पावर, गोदरेज, हेक्सावेयर, जेट एयरवेज, कोटक महिंद्रा बैंक, मुंदरा पोर्ट, एनएमडीसी, ओरिएंटल बैंक, ऑनमोबाइल, पीएफसी, पटनी, सेल, सिन्टेक्स, सुज़लॉन, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, त्रिवेणी इंजीनियरिंग, यूनियन बैंक, यूनिटेक, वोल्टाज, विजया बैंक, यस बैंक, आईआरबी इंफ्रा, बाटा इंडिया, अरबिंदो फार्मा, बजाज होल्डिंग्स जैसे काउंटरों में ओपन इंटरेस्ट 5 से 41 फीसदी घटा है, जबकि इनके शेयर भावों 8 से 20 फीसदी की भारी गिरावट आई है। इन सभी में बड़े पैमाने पर अनवाइंडिंग हुई है। इससे एचएनआई और ऑपरेटरों को तगड़ी चपत लगी।
हम मार्जिन कॉल के चक्कर में फंसे या घबराकर बेचे गए स्टॉक्स की सूची कयों गिना रहे हैं? इसलिए क्योंकि इनकी पीड़ा का अंत अभी हुआ नहीं है। हमारा अनुमान है कि शुक्रवार को 40-50 फीसदी पोजिशन को निपटाया गया है। हम मानते हैं कि बाजार में अभी कुछ और तकलीफ आनी है और आपको इसे झेलना ही पड़ेगा। हमने जिन शेयरों का नाम ऊपर लिया है, उन्हें जबरिया पीटकर अपने भरोसे छोड़ दिया गया है। अब ये अपने दम पर खुद को जमाएंगे और समय के साथ दोबारा उठ खड़े होंगे।
इनका संक्रामक प्रभाव उन दूसरे सेक्टरों और शेयरों पर भी पड़ेगा, जिनके बारे में निवेशक कहते रहे हैं कि हमारे स्टॉक्स को तो कोई आंच नहीं आई है। इन सेक्टरों में फर्टिलाइजर, मीडिया, मेटल, ऑयल व गैस, फार्मा, टेलिकॉम, ऑटो और टेक्नोलॉजी शामिल हैं। अभी तक ये सेक्टर धुनाई से बचे रहे हैं। लेकिन क्या पता, अगले कुछ सत्रों में इनका भी नंबर लग जाए। फर्टिलाइजर सेक्टर पर सोमवार, 29 नवंबर को सरकार नीतिगत फैसला सुनानेवाली है और मौका ताड़कर इससे निकासी शुरू हो सकती। इसलिए मेरी सलाह है कि उक्त सेक्टरों को लेकर कम से कम अगले दस दिनों तक सावधान रहें।
हम रीयल्टी सेक्टर को लेकर अब भी तेजी की धारणा रखते हैं तो इसकी तमाम वजहें हैं। [लेकिन ध्यान रहें, हमारी धारणा के केंद्र में केवल वही रीयल्टी कंपनियां हैं जिनको जमीन बगैर किसी लागत के मिंल गई है और जिन्हें इसके विकास के लिए धन की दरकार नहीं है। इस धारणा में सेंचुरी और बॉम्बे डाईंग कायदे से फिट होती हैं] एक, अब मुंबई में नए हवाई अड्डे को मंजूरी मिल गई है तो नवी मुंबई, उरण और पनवेल में जमीन की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। दो, ज्यादातर अच्छी रीयल्टी कंपनियां जरूरी फंड का इंतजाम कर चुकी हैं। रीयल्टी सेक्टर के स्टॉक काफी कम पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं। अभी जिस तरह उनको गिराया गया है तो उनमें अब खोने को ज्यादा कुछ रह नहीं गया है। इतना तय मानिए कि फंडिंग न होने के बावजूद रियल एस्टेट की मांग और दाम घटने नहीं जा रहे हैं। 2008 के दुर्दिन में भी रियल एस्टेट की कीमतों में ठंडापन नहीं आया था।
मौजूदा संकट से केवल छोटे व असंगठित स्तर के बिल्डरों पर गहरा असर पड़ेगा जो कंस्ट्रक्शन के लिए 24 फीसदी ब्याज तक पर पैसा उठाते रहे हैं। इससे असल में रीयल्टी सेक्टर की लिस्टेड कंपनियों को फायदा होगा क्योंकि वे इक्विटी आधार का फायदा ले सकती हैं और अब भी 13-15 फीसदी ब्याज पर धन जुटा सकती हैं। एक और अहम बात नोट करने की है कि रिजर्व बैंक का नियम है कि बैंक रियल एस्टेट कंपनियों को जमीन खरीदने के लिए कर्ज नहीं दे सकते। इसलिए जिनके पास जमीन है, वे मजबूत स्थिति में हैं। ऐसी रीयल एस्टेट कंपनियां कंस्ट्रक्शन तेज करेंगी क्योंकि काम शुरू होने के बाद उन्हें अपफ्रंट पैसा मिल जाता है। इस संदर्भ में बता दूं कि एक्सिस बैंक बॉम्बे डाईंग से 4 लाख वर्गफुट जमीन खरीद चुका है।
हम पहले भी कह चुके हैं कि बाजार का हल्का होना उसके तेज गति से मंजिल की ओर बढ़ने की पूर्व-शर्त है। इसलिए अगले कुछ सत्रों में कुछ नए सेक्टरों में भी गिरावट आ सकती है। निवेशकों को यह बात अपने जेहन में बैठा लेनी चाहिए। वैसे भी, मौजूदा समस्या का मूल कारण स्टॉक्स में नहीं, ज्यादा उधार लेकर किए गए निवेश में छिपा हुआ है। इसलिए वास्तविक दीर्घकालिक निवेशकों को कोई नुकसान हीं होने जा रहा।