कई साल पहले दिल्ली में एक बड़ी ब्रोकरेज फर्म के मुखिया से बात हो रही थी। उनको मैंने बताया कि कैसे वित्तीय संस्थाओं व बैंकों की खरीद-बिक्री को हम भावों के चार्ट पर पकड़ सकते हैं और उसके आधार पर देख सकते हैं कि कहां उसकी खरीद आ सकती है और कहां उनकी बिक्री। संस्थाओं व बड़े निवेशको की डिमांड-सप्लाई का नियम मैंने हाल-हाल में सीखा था और उसको लेकर मैं काफी उत्साहित था। लेकिन मेरे सारे उत्साह पर पानी डालते हुए उन्होंने कहा कि रिटेल ट्रेडर शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग से कभी नहीं कमा सकते।
उन्होंने अपनी बात की तस्दीक खुद के 25 साल से ज्यादा के अनुभव से की। सच भी है कि 95 प्रतिशत ट्रेडर बाज़ार में धन गंवाते हैं और इनमें से 99 प्रतिशत ट्रेडर रिटेल श्रेणी के होते हैं। इसकी अहम वजह यह है कि वे कमाई के शॉर्टकट में पड़ते हैं। हमेशा टिप्स के पीछे भागते हैं। बुद्धि के बजाय मन से काम करते हैं। ट्रेडिंग उनके लिए एक तरह का नशा है। वे कभी भी खुद का ट्रेडिंग सिस्टम विकसित करने की कोशिश नहीं करते।
असल में, रिटेल ट्रेडरों को अगर बाज़ार से कमाना है तो उन्हें सच्चाई को जस का तस समझने की कोशिश करनी होगी और अपनी सीमाओं को स्वीकार करना होगा। मन का फंदा तोड़कर उसके ऊपर बुद्धि को मांजकर रखना होगा। कोई कितना भी झांसा दे, हमें कम मेहनत में ज्यादा कमाई के लालच में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि हमें लालच में फंसानेवाले दरअसल अपनी आसान कमाई का इंतज़ाम करने में लगे होते हैं।
कुछ दिनों पहले इसी तरह के एक दुर्जन का फोन आया। बोले कि उनकी रिसर्च फर्म कैश व फ्यूचर्स में इंट्रा-डे टिप्स देती है और सेबी में रजिस्टर्ड भी है। रोज़ की एक पक्की सलाह देंगे। मैंने पूछा कि स्टॉक सेलेक्शन का उनका सिस्टम क्या है। लगे आंय-बांय बकने। लेकिन दावा किया कि उनकी दस में से आठ टिप्स सटीक बैठती है। फीस 11,000 रुपए प्रति माह। हमारा कहना है कि आप ऐसे ठगों से सावधान रहें। कमाना है तो ऐसा सिस्टम बनाइए कि लोग आपके खरीदने के बाद खरीदें या आपके बेचने के बाद बेचें।
यह भी ध्यान रखें कि हम आज ग्लोबल दुनिया में रह रहे हैं। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कितनी ग्लोबल हुई हैं, इसका तो पता नहीं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के वित्तीय बाज़ार एकदम ग्लोबल हो गए हैं। किसी भी अंतरराष्ट्रीय घटना से बड़े से लेकर छोटे बाज़ार तक एक साथ हिल जाते हैं। ग्लोबल नेटवर्क के साथ चलती पूंजी के सामने लोकल दिग्गज़ बौने साबित हो जाते हैं। ऐसे में वित्तीय बाजार की समझ और अपना हुनर ही अंततः काम आता है।
सीधी-सी बात है कि ग्लोबल नेटवर्क से जुड़ी पूंजी या उसके साथ लयताल मिलाकर चले रहे लोकल ऑपरेटरों के प्रोफेशनल अंदाज़ को टक्कर देना रिटेल ट्रेडरों के वश की बात नहीं है। रिटेल ट्रेडर उनका अनुसरण ही कर सकते हैं। लेकिन टुच्चे अहंकारवश रिटेल ट्रेडरों को यह सच्चाई हजम नहीं होती। नतीजा यह होता है कि उनकी सारी पूंजी धीरे-धीरे बहकर प्रोफेशनल व संस्थागत ट्रेडरों के बैंक खातों में पहुंच जाती है।